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________________ षष्ठः सर्गः ववृते = जाता। चित्रम् = आश्चर्यम् / दर्शनीयाऽपि अदृश्येति विरोधः, इन्द्रवराददृश्यत्वं गतेति अविरोधः / तथाऽपि = अदृश्याऽपि, अस्य = नलस्य, मूर्तिःकायः, विश्वकदृश्या = जगदेकदर्शनीया, इति यत , तत, चित्रतरम् = अतिशयितम् आश्चर्य, बभूव = विविदे, दृश्यत्वाऽदृश्यत्वयोविरोधादिति भावः / विश्वस्यैकस्यैव दृश्या दृष्टिप्रिया एव इति अविरोधः // 8 // __ अनुवादः-उस समय कुण्डिनपुरमें प्रवेश करनेवाले नलकी वैसी दर्शनीय मूर्तिः भी अदृश्य हो गयी, यह आश्चर्य है। अदृश्य होनेपर भी उनकी मूर्ति जगत का एकमात्र दृश्य जो है वह और भी ज्यादा आश्चर्य है // 8 // टिप्पणी-कुण्डिनवेशिनः = कुण्डिनं विशतीति कुण्डिनवेशी, तस्य कुण्डिन+ विश् + णिनिः ( उपपद० )+ ङस् / नदृश्या = न दृश्या ( सुप्सुपा० ) / ववृते = वृत + लिट् + त / कुण्डिनपुरमें प्रवेश करनेवाले नलकी वैसी दर्शनीय मूर्ति भी अदृश्य हो गयी ऐसा कहने से विरोध हुआ, इन्द्र के वरसे अदृश्य हो गयी यह विरोधका परिहार है। विश्वकदृश्या = एका चाऽसौ दृश्या ( क० धा० ) / विश्वस्य एकदृश्या ( 10 त० ) / चित्रतरम् = अतिशयेन चित्रं, चित्र+तरपृ+ सुः / अदृश्य होनेपर भी उनकी मूर्ति विश्वमें एकमात्र दृश्य हुई वह और भी ज्यादा आश्चर्य है कहनेसे दृश्यत्व और अदृश्यत्वका विरोध हुआ, एकमात्र विश्वकी दर्शनीय वा दृष्टिको प्रिय ही है, इस प्रकार विरोधका परिहार हुआ / इस पद्यमें पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध में दो विरोधाभास अलङ्कारोंकी संसृष्टि है // 8 // जनैविदग्धर्भवनैश्च मुग्धैः पदे पदे विस्मयकल्पवल्लीम् / विगाहमाना पुरमस्य दृष्टि रथाऽऽवदे राजकुलाऽतिथित्वम् // 6 // अन्वय:-अथ अस्य दृष्टि: विदग्धैः जनः मुग्धैः भवनैश्च पदे पदे विस्मयकल्पवल्ली पुरं विगाहमाना राजकुलाऽतिथित्वम् आददे // 9 // व्याख्या-अथ = अनन्तरम्, अस्य = नलस्य, दृष्टिः = नेत्रं, विदग्धः = अभिज्ञैः, जनैः = लोकः, मुग्धः = सुन्दरैः, भवनश्च = मन्दिरैश्च, पदे पदे = प्रतिपादं, विस्मयकल्पवल्लीम् = आश्चर्यकल्पलताम्, ' आश्चर्यकारिणीमिति भावः / तादृशी पुरं = कुण्डिननगरी, विगाहमाना = विभावयन्ती सती, राजकुलाऽतिथित्वं = राजवंशाऽऽतिथ्यम्, आददे = जग्राह, नल: क्रमाद्राजभवनं ददर्शति भावः // 9 // अनुवादः-तब नलके नेत्रोंने रीसक जनोंसे और सुन्दर भवनोंसे पग-पगपर आश्चर्यकी कल्पलतारूप नगरीमें प्रवेश करके राजभवनको देखा // 9 //
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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