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________________ द्वितीयः सर्गः रमणीयाम्, उत्तमामिति भावः / गतिम् =अवस्थां, कथं =केन प्रकारेण, न एतु=न प्राप्नोतु, एत्वेवेति भावः // 39 // अनुवाद-पवित्र मानस आदि सरोवर और गङ्गा आदि नदियोंकी सेवा करनेवाला और समाधि ( ध्यान वा मुद्रण ) से समूची रातको बितानेवाला ( इस प्रकार तीर्थसेवा और साधन करनेवाला) कमल, दमयन्तीके चरण ऐसे नामवाले जन्मान्तरमें उत्तम गतिको कैसे नहीं प्राप्त करेगा ? ( करेगा ही ) // 39 // __ टिप्पणी-श्रितपुण्यसरःसरित्स रांसि च सरितश्च सरःसरितः (द्वन्द्वः)। "कासारः सरसी सरः" इति "अथ नदी सरित्" इत्युभयत्राऽप्यमरः / श्रिताः पुण्याः सरःसरितो येन तत् (बहु० ) / समाधिक्षपिताऽखिलक्षपं=समाधिना ( ध्यानेन मुकुलीभावेन वा ) क्षपिताः (तृ० त० ) / "क्षये" धातुसे गिच् और पुक् आगम होकर क्त प्रत्यय होने से 'क्षपित' पद बनता है, मित् होनेसे "मितां ह्रस्वः" इससे ह्रस्व / अखिलाश्च ताः क्षपाः (क० धा० ) / समाधिक्षपिता अखिला: क्षपाः येन तत् (बहु० ) / जलजं=जले जातम्, बल+जन्+ड ( उपपद०)। दमयन्तीपदनाम्नि = दमयन्त्याः पदं (ष०त०) वत् नाम यस्य तत्, तस्मिन् ( बहु० ), गति="गतिर्मार्ग दशायां च" इति विश्वः / एतु =इण् धातुसे संभावनामें लोट् + तिप् / मानस आदि सरोवर वीर गंगा आदि नदियोंकी सेवा करनेवाला और समाधिसे समूची रातको बितानेवाला पुरुष जैसे दूसरे जन्ममें उत्तम गतिको प्राप्त करता है, उसी प्रकार सरोवर और नदियोंकी सेवा करने वाला और सूर्यके अदर्शनसे रातभर मुकुलितत्व रूप समाधि करनेवाला कमल जन्मान्तरमें दमयन्तीके भरणत्वकी प्राप्ति कैसे नहीं करेगा ? यह भाव है / इस पद्यमें श्लिष्ट विशेषणोंके साम्यसे कमलमें सरोवर और नदियोंकी सेवा करनेवाले तथा समाधि करनेवाले तपस्वीके व्यवहारका समारोपसे समासोक्ति अलङ्कार है तथा "कथं न एतु" यहाँ पर अर्थापत्ति है। इस प्रकार अङ्गाङ्गिभावसे सङ्कर बलकार है / / 39 // - - सरसीः परिशीलितं मया गमिकर्मीकृतनकनीवृता। अतिमित्वमनायि सा दृशोः सदसरसंशयगोचरोदरी // 40 // अन्वयः-सरसीः परिशीलितुं गमिकर्मीकृतनैकनीवृता मया सदसत्संशयगोचरोदरी सा दृशोः अतिषित्वम् अनायि // 40 //
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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