SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय संस्करण यद्यपि संस्कृतके महाकवियोंकी कृतिमें एक-एक विशिष्ट उत्कर्ष विद्यमान है, जैसे प्रसादगुण, उपमा आदि अलङ्कार और वैदर्भी रीतिमें कालिदास; अर्थगौरव, प्रकृतिवर्णन आदिमें भारवि; पदलालित्य और अनुप्रास आदिमें दण्डी और वर्णन आदिकी व्यापकतामें बाणभट्ट अपनी सानी नहीं रखते हैं / तथाऽपि संस्कृत महाकाव्य में महाकवि श्रीहर्ष अप्रतिम हैं / मैंने पूर्व संस्करणकी भूमिकामें उनकी रचनाकी कतिपय विशेषताको प्रदर्शित किया है तो भी इस द्वितीय संस्करणमें भी थोड़ा-सा दिग्दर्शन करनेका प्रयास करता है। सभी जानते हैं कि प्रतिभा; लोकचरित्रविज्ञता और शास्त्रज्ञता इनसे काव्यकी उत्पत्ति होती है, इन तीनों गुणोंके पारिपाकसे काव्य चरम उत्कर्षको प्राप्त होता है / जैसे केवल शास्त्रज्ञता होनेसे कवित्व कुण्ठित होता है वैसे केवल लोकचरित्रविज्ञता होनेसे काव्य, ग्राम्यता आदि अनेक दोषोंका स्थान होता है / मुरारि कविमें शास्त्रज्ञताकी मात्रा अधिक होनेसे उनके अनर्घराघवमें कवित्वका परिपाक नहीं हो पाया है। भवभूतिके उत्तररामचरितमें और दिङ्नागकी कुन्दमालाकी तुलनामें उनका अनर्घराघव नहीं ठहरता है। जैसे प्रतिभाके साथ साथ पूर्वोक्त दोनों गुणोंका उत्कर्ष श्रीहर्षके नैषधीयचरितमें देखा जाता है संभवतः वैसा उत्कर्ष विश्वसाहित्यमें प्राप्त नहीं है। नैषधीयचरितकी विशेषताको परखनेके लिए एक स्वतन्त्र ग्रन्थकी आवश्यकता है; इसलिए अभी इतनेसे ही सन्तोष करते हैं / -शेषराजशर्मा
SR No.032779
Book TitleNaishadhiya Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year
Total Pages1098
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy