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________________ तुलनात्मक धर्मविचार. सब हमारे पास आने से डरते हैं और कांपते हैं ऐसी लोगों की मान्यता होने से एक प्रकार से संतोष मानते / अपने में अद्भुत शक्ति है ऐसा मनाने के लिये भी यह तत्पर रहते हैं और अपने में अद्भुत शक्ति की संभावना करने वाले मनुष्य ठीक हैं ऐसा अन्त में उनको विश्वास होता / इनमें जिस मनुष्य को अपने महान् संकल्प बल का ज्ञान रहता है तथा जो मनुष्य अति आनंद से अथवा जो समाधि दशासे अनुभव कर सकता है उस मनुष्य की लोगों पर अधिक श्रद्धा रहती / इस प्रकार होने से लोगों की इच्छानुसार अमुक शक्ति उस में है ऐसा वह जब स्वयम् माने तब अपने तथा लोगों की धारणा अनुसार अपने अन्दर की शक्ति को अज़माना ही बाकी रहता / केवल उसे अमुक खास चेष्टाओं से मंत्र रूप में अपनी इच्छा मुखसे बतानी पड़ती / उसे इतना ही करना पड़ता कारण कि मनुष्यों का ऐसा विश्वास था की उसने शब्द मात्र का ही उच्चारण किया कि कार्य सिद्ध हो जाता। वह जो अमुक को चोट लगाने का बहाना भी करता तो उसे चोट लगती ही और यदि वह बहूत दूर भी होतो भी इस प्रकार होता इसका नाम जादु है। यदि उसे अपनेपर पूरा विश्वास न हो तो स्वयं लगाई हुई चोट दूसरे को लगती है इसका विशेष निश्चय करने के लिये वह रेतीमें मनुष्य का चित्र खींचता अथवा मट्टी या मोम का बुत बनाता और जैसे कि वह बुत या चित्र पर चोट मारता वैसी ही चोट प्रत्यक्ष लगी है ऐसी पीड़ा
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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