SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तुलनात्मक धर्मविचार प्राचीन कालके मनुष्योंने स्वतः सिद्ध माना था। ऐसा माननेके लिए वह ऐसा अपकृत्य करनेवाले मनुष्य को ढूंडते और योग्य दंड देते थे और समाजपर आ पड़ी आफतके अनुसार वह यह दंड निर्धारित करते / जब समाजपर बड़ी भयंकर आपत्ति आ पड़ती तब ऐसे मनुष्यको वह मृत्यु दंड की सज़ा देते। ऐसे मृत्यु दंड की सज़ा से समाजकी शुद्धि हो सकती है तथा देवताओं के साथ समाजका संबंध पुनः होता है ऐसा गाल* लोग मानते थे इस प्रकार प्रथम अपकृत्य करनेवालेको ही मृत्यु दंड की सजा देकर अर्थात् क्रोधित हुए देवताको उसकी बलि चढ़ाकर समाज अपने देवको प्रसन्न करता परन्तु पीछेसे निरपराधी मनुष्यके बलिदानसे देवताका क्रोध शान्त होता है ऐसा माना जाता और उसके लिए समाज के मनुष्यके बदले लड़ाई में पकड़े हुए कैदी की बलि चढ़ानेका रिवाज प्रचलित हुआ था। जब ऐसे कैदी नहीं मिल सकते थे तब देवताका भोग होनेके लिए किसी भी मनुष्यको लालच दिया जाता / जब मार्सेल्समें मनुष्य महामारी से पीड़ित हुए थे तब उन्होंने समाजके व्ययसे एक वर्ष तक एक भिखारी को ऐशआराममें रखने की लालचसे देवताका भोग होनेके लिए लालच दिया था और उसके बलिदानसे सर्व समाजकी शुद्धि की / * गाल अर्थात् फ्रांस निवासी.
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy