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________________ तुलनात्मक धर्मविचार. 123 प्रथम तृष्णाओं को रोका जाता है और इस से बौद्ध धर्म के नीतिशास्त्र में ऐसा न करो वैसा न करो कहा गया है। बौद्ध धर्म की पांच महाज्ञाओं अर्थात् पांच शील जो भिक्षु तथा गृहस्थों को अवश्य पालने चाहिएं वह इस प्रकार हैं। (1) हिंसा मत करो ( 2 ) चोरी मत करो ( 3 ) व्यभिचार / मत करो ( 4 ) असत्य मत बोलो (5) मद्यपान मत करो दूसरी पांच महाज्ञाएं जो केवल भिक्षुओं को ही पालनी हैं वह भी निषेधात्मक हैं। - बौद्ध धर्म संयम से आरंभ होता है और निर्वाण तक पहुंचता है। अस्तित्व के अंत को अर्थात् आत्मा के लय को निर्वाण समझना कि नहीं ? इस विषय पर बुद्ध ने स्वयं कोई निर्णय नहीं किया और बौद्ध धर्म में सत् और असत् , नित्य और अनित्य, तभा परिमित और रिमित इसका निर्णय करने की अथवा इसकी चर्चा करने की मनाही की गई है। बुद्ध की निर्वाण की कल्पना विषय निश्चय पूर्वक इतना ही कहा जा सकता है कि जिस अवस्था में संसार की समाप्ति होती है और पुनर्जन्म नहीं रहता उसे वह निर्वाण मानता है / मनुष्य के भविष्य के संबंध में ऐसा केवल निषेधात्मक निरूपण निरीश्वरवाद की तरह पिछले बौद्ध धर्म में निभ नहीं सका। वास्तविक रीतिसे देखने से ऐसी केवल निषेधात्मक वृत्ति को छोड़ देने से ही बौद्ध धर्म एक धर्म के रूप में माना गया है। इस प्रकार चेतन के लय की अवस्था को नहीं परन्तु आनन्दमय
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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