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________________ 118 __.बौद्धधर्म. :: जिसके विषय में प्रश्न ही न कर सकें ऐसे यह सर्व देशीय अशुभ दर्शन का परिणाम ऐसा हुआ कि बुद्धदेवने जीवन की तृष्णा को दुःख मात्र का मूलरूप माना और संसार में अथवा पुनर्जन्म में रही श्रद्धाने इस सिद्धान्त को पुष्ट किया। इस लिए बुद्ध के संप्रदाय में संसार को कैसा स्वरूप दिया गया है तथा उसका कैसा उपयोग किया गया है इन दो बातों की समझने की ज़रूरत रहती है। वैसे ही दुःख के निवारण के लिय जैसी ईश्वर की धारणा निरुपयोगी और उलटे रस्ते पर ले जाने वाली है वैसा ही तत्वज्ञान भी है ऐसा बुद्ध का पूर्ण विश्वास होने पर भी उसके संप्रदाय में जैसे धार्मिक मावना विना चलता नहीं वैसे तत्वज्ञान का आश्रय लिए विना भी चलता नहीं, इस बात की भी साथ साथ समझने की अ.वश्यकता है। : पूर्ण अनुसन्धान करने से हमको यह प्रतीत होता है कि बुद्धने तत्वज्ञान को उड़ा देने का प्रयत्न करते हुए तत्वज्ञान के बदले अध्यात्मज्ञान को मान लिया है। क्षणिक संस्कारों तथा प्रकृत्तिओं का वर्णन उसने अध्यात्मज्ञान में किया है। अध्यात्मज्ञान का बाहर की वस्तुओं से कोई संबंध नहीं परन्तु हमारे संस्कारों के साथ है इस लिए उस अध्यात्मज्ञान में वाथ जगत् का विचार तक नहीं किया गया / यदि हम ऐसा माने कि अध्यात्मज्ञान में वाह्यवस्तुओं और वाह्यजगत् की जरूरत नहीं रहती तो केवल जिन जिन संस्कारों और जिन
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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