SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तुलनात्मक धम्मैविचार. धर्म की रचना की गई है और दुःख में से छूटने के लिए अपने शिष्यों का किसी भी देव की उपासना करने की ओर प्रवृत्ति न हो ऐसा उसने प्रयत्न किया है तो भी बौद्ध धर्मे की उन्नति होने से पूर्व बुद्ध की व्यक्ति को ही औरों से अच्छा माना गया है और आगे चल कर उसे दिव्य माना गया है / इसी विश्वास ने ही बौद्ध संप्रदाय को धर्म का स्वरूप दिया है / ऐसी उपासना से ही उसमें से धार्मिक बल उत्पन्न होने से वह दुनियां के धर्मों में स्थान प्राप्त कर सका है / परन्तु बौद्ध संप्रदाय के विश्वासों में इस प्रकार ईश्वर की भावना जोड़ने से ही हम उसे धर्म के रूप में स्वीकार कर सकते हैं अर्थात् एक धर्म के रूप में / बौद्ध धर्म ऐसे सिद्धान्तों पर रचा हुआ है कि जिसका स्वीकार बुद्धने स्वयं नहीं किया / उसका तथा उसके अनुयाईओं का उद्देश्य तो दुःख से छूटने का ही था परन्तु जब उसने इस उद्देश्य को पार करने के लिए देवों को त्याग देने का उपदेश किया तब उसके अनुयाईओंने अपने अपने अनुभव से ढूंड निकाला कि मनुष्य जाति की आवश्यकताएं पूर्ण करने के लिए देव को छोड़ सकें ऐसा नहीं / बुद्ध की दिव्यता से और पीछे से माने जाने वाले स्वर्ग के देवताओं में उसके अनुयायी श्रद्धा रखते हैं। ____इस प्रकार उनका धर्म अमुक राजकीय समाज में प्रवेश होने पर नहीं परन्तु केवल श्रद्वा पर ही रचा हुआ होने से वह
SR No.032770
Book TitleTulnatmak Dharma Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajyaratna Atmaram
PublisherJaydev Brothers
Publication Year1921
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy