________________ तुलनात्मक धर्मविचार दर्शाया गया है, इस लिए वेदमें मा मित्रस्य चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षन्ताम् मित्रस्याहं चक्षुषा सर्वाणि भूतानि समीक्षे मित्रस्य चक्षुषा समीक्षा महे / इस में सर्व भूत अर्थात् प्राणिमात्र वा मनुष्य पशु इत्यादि सर्व के साथ प्रेम का व्यवहार करने का आदर्श दिखाया गया है और सर्व मनुष्य समाज परस्पर प्रेम का व्यवहार करें यह भी बोधन कराया है। इसी संबंध में मा गृधः कस्य स्विद्धनम् वेद के इस मंत्र में किसी भी मनुष्य मात्र के धन को अन्याय से लेना वर्जित किया गया है और उपासना का फल शान्ति उसी को प्राप्त हो सकती हे जो सर्व मनुष्य मात्र तथा प्राणिमात्र से प्रेम का व्यवहार करता है जैसे " यस्तु सर्वाणि भूतान्यात्मान्येवानुपश्यति सर्व भूतेषुचात्मानं " इत्यादि / इस लिए वैदिक उपासना काण्ड शान्तियुग परिवर्तक है यह बात निर्विवाद है। मनुष्य मात्र से जो प्रेम करने का उपदेश तथा आदर्श इसमें है वह अद्भुत है। ईश्वर भक्त संन्यासी अथवा ब्रा उपासक सदैव समयदर्शी हो कर सर्व मनुष्य मात्र से प्रेम का व्यवहार करें यह श्रीकृष्णदेव ने गीता में उपदेश किया। कृष्णदेव गीता में कहते हैं कि ' अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम् ' हे मनुष्यो तुमको शुभ या अशुभ कर्म भोगने पड़ेंगे और वेद में ओ३म् क्रतो स्मरः कृतेस्पर अर्थात् हे स्वतंत्रता से कर्म करनेवाले जीव तू सर्व रक्षक ईश्वर के गुणों को याद रख भूल नहीं और याद रख कि जो