________________ भूमिका. ( अर्थ ) " अश्वमेध और पुरुष मेध जो इस रीति पर इस यजुर्वेद अनुसार किये जाते थे वह वास्तव में घोड़ों और मनुष्यों के बलिदान नहीं हैं।" यह ठीक है कि बुद्धदेव के समय भारत में अनेक स्थलों पर स्वार्थवश लोग यज्ञ के साथ पशु बलिदान भी करने लग गए थे और इसी लिए बुद्धदेव ने तद्विषयक सुधार किया / अब जब कि पूर्व और पश्चिम के पंडित जिज्ञासु होकर अनुसन्धान करने लगे हैं तो शीघ्र ही यह बात दृढ़ हो जाएगी कि यज्ञ में पशु बलिदान आदि काल में नहीं था और आगे को न होना चाहिए / वैदिक काल की देवपूजा जैसा कि यास्काचार्य्यने लिखा है सृष्टि के पदार्थों का उपयोग था / वैदिक उपासना काण्ड के विषय में हमें इस शब्द के धात्विक अर्थों पर विचार करना होगा इसका अर्थ निकटवर्ती होना है। ईश्वर जो सर्व शुभ गुणों का भण्डार है उसके निकट वर्ती होना अथवा उसके गुणों को धारण करना यही उपासना है। ईश्वर एक भूगोल का पति ही नहीं किन्तु विश्व का स्वामी और विश्व से संबंध रखने वाला, वेदों में दर्शाया गया है / यथा (1) य आत्मदा बलदा यस्य विश्व उपासते............ (2) पादोऽस्य विश्वा भूतानि........................ ( 3 ) ईशावास्यमिदं सर्व यत्किञ्च............इत्यादि मंत्रों में वह विश्वपति विश्व रचने हारा और विश्व में व्यापक