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________________ 972 हैमपञ्चपाठी. सोऽपि भवति। अश्वशब्दाद् बिदादिषु पाठादञ् / इहायनञ् / आश्वः। आश्वायनः / शंखशब्दादू बिदादिष्व गर्गादिषु यञ् कुञ्जादिषु आयन्यः इहायनञ् / शांखः। शाङ्ख्यः। शांखायनः। जनशब्दान्नडादिष्वायनण् इहायनञ् / तत्र यूनि प्रत्यये विधेये विशेषः / जानायनिः / जानायनो युवा / उत्सग्रीष्मयोरुत्सादिषु पाठोऽनन्तरार्थोऽनपत्यार्थश्च / इह तु वृद्धेऽयमेव यथा स्यादित्येवमर्थः / औत्सायनः। प्रैष्मायणः / अर्जुनशब्दस्य बाह्वादिषु पाठोऽनन्तरार्थः / वृद्ध त्वयमेव / आर्जुनायनः / वैल्येति विलिशब्दो भ्यान्तस्ततो यूनि प्रत्ययः। वैल्यायनो युवा। 1142 नडादिभ्य आयनण् // 6 // 1 // 53 // नड / चर / वक / मुञ्ज / इतिक / इतिश / उपक / लमक / सप्तल (सत्तल)। सत्वल / व्याज। (वाज) व्यतिकेत्येके / प्राण / नर / सायक / दाश / मित्र / दाशमित्र / द्वीपा / द्वीप / पिङ्गर / पिङ्गल / किंकल / किंकर / कातर / काथल / काश्यप / काश्य / नाव्य / अज / अमुष्य / लिगु / चित्र / अमित्र / कुमार / लोह / स्तम्ब / स्तम्भ / अग्र / शिंशपा। तृण / शकट / मिकट / मिमत / सुमत / जन / ऋच् / इन्ध / ऋगिन्ध / मित। जनंधर / जलंधर / युगंधर। हंसक / दण्डिन् / हस्तिन् / पञ्चाल / चमसिन् / सुकृत्य / स्थिरक / ब्राह्मण / चटक / अश्वल / खरप / बदर / शोण / दण्डम / छाग / दुर्ग / अलोह / कामुक / (कामक) ब्रह्मदत्त / उदुम्बर / सण / लङ्क / केकर / (ककर)। नाव्य / आलाह / ऋग / वृषगण / अध्वर / बालिश। दण्डप। इति नडादयः / बहुवचनमाकृतिगणार्थम् / 1144 हरितादेरञः // 6 // 55 // बिदाद्यन्तर्गणो हरितादिः।। 1149 शिवादेरण् // 6 // 60 // शिव / प्रौष्ठ / प्रौष्ठिक / वण्ट / जम्ब / जम्भ। ककुभ / कुथार / अनभिम्लान / ककुस्थ / कोहड / कहूय / रोध / पिलधर / वतण्ड। तृण / कर्ण। क्षीरहद / जलह्रद / परिषिक। शिलिन्द / गोफिल / गोहिल / कपिलक / जटिलक / बधिरक / मञ्जिरक / वृष्णिक / खजार / खाल। रेख / लेख / आलेखन। वर्तन / ऋक्ष / वर्तनक्ष / विकट / पिटाक / तृक्षाक / नभाक ऊर्णनाभ / सुपिष्ट / पिष्टकर्णक / पर्णक / मसुरकर्ण / मसूरकर्ण / खडूरक / गडेरक / यस्क / लह्य / द्रुह्य / अयस्थूण / भलन्द। भलन्दन / विरूप / विरूपाक्ष / भूरि / संधि / भूमि / मुनि / क्रुश्चा / कोकिला / इला / सपत्नी / जरत्कारु / उत्केया / काय्या। सुरोहिका / पोठीनासा / महित्री। आर्यश्वेता। ऋष्टिषेण / गङ्गा / पाण्डु / विपाश् / तक्षन् / इति शिवादिः। अत्राविरूपाक्षा. दिञोऽपवादः / भूर्यादीनामा आर्यश्वेताया एयणः, ऋष्टिषेणस्य सेनान्तस्य सेनान्तब्येतोः / बिदादिपाठाद् वृद्धेऽओव भवति / तदन्ताच्च यूनि अत इत्र तस्य 'जिदार्षादणिोः ' इति लुपि आर्टिषेणः पिता च पुत्रः। तथा ऋष्टिषेणस्यापत्यं वृद्धं बहवः बिदाद्यञ् तस्य 'यात्रः' इत्यादिना लुपि ऋष्टिषेणाः। पाण्डुपाठः शुभ्राद्येयणा गङ्गापाठस्तिकाद्यायनित्रा च समावेशार्थः / तेन पाण्डोरूप्यं गङ्गायाश्च त्रैरूप्यं सिद्धम् / पाण्डवः / पाण्डवेयः। गाङ्गः। गाङ्गायनिः / गाङ्गेयः।
SR No.032767
Book TitleHaimbruhatprakriya Mahavyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirijashankar Mayashankar Shastri
PublisherGirijashankar Mayashankar Shastri
Publication Year1931
Total Pages1254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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