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________________ 502 . सिद्धहैमबृहत्मक्रिया. [आख्यातमकरणे एषां किपि कत् अत् चुत इति / अण रण वणवण बण भण भ्रण मण धण ध्वण ध्रण कण चण शब्दे // 26 // ओण अपनयने // 266 // ओणति। औणीत् / गोणाञ्चकार // शोण वर्णगत्योः // 267 / श्रोण श्लोण संघाते // 269 // पैण गसिपेरणलेषणेषु // 270 // इति टवर्गीयान्ताः॥ चितै संज्ञाने // 27 // चेतति / अचेतीत् / चिचेत / अत सातत्यगमनेः // 272 / / अतति आतीत् / आत / आततुः। च्युत आसेचने। आसेचनमार्दीकरणम् // 273 // च्योतति। ऋदिखावाङ्। अच्युतत् / अच्योतीत् / चुत चुतृ 'च्युत क्षरणे // 276 // अचुतत् / अचुतम् / अश्चोतीत् / अच्युतत्। अच्योतीत् / जुन भासने // 277 // अतु बन्धने॥२७८॥ अन्तति / कित निवासे रोगापनयने संशये च // 279 // 117 कितः संशयप्रतीकारे // 3 // 46 // कितो धातोः संशये प्रतीकारे च वर्तमानात् स्वार्थे सन् प्रत्ययः स्यात् / 118 सन्यङश्च // 4 / 1 / 3 // सन्नन्तस्य यङन्तस्य च धातोः राध एकस्वरोऽवयवो द्विः स्यात् / षष्ठीनिर्देश उत्तरार्थः। चकारः पूर्वोक्तनिमित्तसमुच्चयार्थ उत्तरार्थ एव / तेनोत्तरत्र परोक्षाडेसन्नन्तयडन्तानां च यथासंभवं द्वितम् / 119 उपान्त्ये // 4 // 3 // 34 // नामिन्युपान्त्ये सति धातोरनिट् सन् किद्व- . स्यात् / 120 स्वार्थे // 4 / 4 / 61 // स्वार्थे विहितस्य सन आदिरिड् न स्यात् / विचिकित्सति / संशेते इत्यर्थः। व्याधि विचिकित्सति / प्रतिकरोत्यर्थः। निग्रहविनाशौ प्रतीकारस्यैव भेदौ तेनात्रापि भवति-क्षेत्रे चिकित्स्यः पारदारिकः / निग्राह्य इत्यर्थः / चिकित्स्यानि क्षेत्रे तृणानि-विनाशयितव्यामीत्यर्थः। संशयमतीकार इति किम् / केतनम् / केतयति। .. 121 अतः॥४।३।८२॥ अकारान्ताद्धातोविहितेऽशिति प्रत्यये तस्यैव धातोलगन्तादेशः स्यात् / अचिकित्सीत् / अत इति विहितविशेषणादिह न / गतः / 122 धातोरनेकस्वरादाम पराक्षायाः कृभ्वस्ति चानु तदन्तम् // 34 // 46 // अनेकस्वराद्धातोः परस्याः परोक्षायाः स्थाने आमादेशः स्यात् /
SR No.032767
Book TitleHaimbruhatprakriya Mahavyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirijashankar Mayashankar Shastri
PublisherGirijashankar Mayashankar Shastri
Publication Year1931
Total Pages1254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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