________________ 89 जैनदर्शन में द्रव्य-गुण-पर्याय भेदाभेदवाद की अवधारणा अत्यो खलु दव्वमओ दव्वाणि गुणप्पगाणि भणिदाणि / तेहिं पुणो पज्जाया पज्जयमूढा हि परसमया // 2 // अर्थ द्रव्यमय है और द्रव्य गुणमय है। उनमें पर्याय होती है। यहाँ अर्थ द्रव्यमय और द्रव्यों को गुणमय कहने से उनके अभेद या ऐक्य को सूचित किया है। आलाप-पद्धति में पर्याय के सम्बन्ध में लिखा है। गुणविकाराः पर्यायास्ते द्वधा अर्थव्यञ्जनपर्याय भेदात् // 15 // गुण के विकार को पर्याय कहते हैं / वे पर्यायें दो प्रकार की हैं / (1) अर्थ पर्याय (2) व्यञ्जन पर्याय। वसुनन्दिश्रावकाचार में भी लिखा है - सुहुमा अवायविसया खणखइणो अत्थपज्जया दिवा / वंजणपज्जाया पुण थूला गिरगोयरा चिरविवत्था // 25 // पर्याय के दो भेद हैं अर्थ पर्याय और व्यञ्जन पर्याय / इनमें अर्थ-पर्याय सूक्ष्म है, ज्ञान का विषय है, शब्दों से नहीं कही जा सकती और क्षण-क्षण में नाश को प्राप्त होती रहती है, किन्तु व्यञ्जन पर्याय स्थूल है, शब्दगोचर है अर्थात् शब्दों के द्वारा कही जा सकती है और चिरस्थायी है। तर्कभाषा में लिखा है "भूतभविष्यत्वस्पर्शरहितं वर्तमानकालावच्छिन्नं वस्तुस्वरूपं चार्थपर्यायः" अर्थात् जो पर्याय भूत और भविष्यत् काल में स्पर्श से रहित है, मात्र वर्तमान काल में ही एक समय मात्र ही रहता है, वह अर्थ पर्याय है। अलापपद्धति में अर्थपर्याय के भेदों के सम्बन्ध में लिखा है, अर्थपर्यायास्ते द्वेधा स्वभावविभाव पर्याय भेदात् // 16 // अर्थ पर्याय दो प्रकार के हैं 1. स्वभाव पर्याय 2. विभाव पर्याय / स्वभावार्थ पर्याय सब द्रव्यों में होती है, किन्तु विभाव पर्याय जीव और पुद्गल इन दो द्रव्यों में ही होती है, क्योंकि ये दो द्रव्य ही बंध अवस्था को प्राप्त होते हैं / नयचक्र में कहा है - सम्भावं खु विहावं दव्वाणं पज्जयं जिणुट्टि / सव्वेसिं च सहायं विव्भावं जीव पोग्गलाणं च // दव्वगुणाण सहावं पज्जायं तह विहावदो णेयं / जीवे जीव सहावा ते विहावा हु कम्मकदा // पोग्गलदव्वे जो पण विभाओ कालपेरिओ होदि / सो णिद्धरुक्खसहिदो बंधो खलु होइ तस्सेव // 18.20 // जिनेन्द्र भगवान ने द्रव्यों की स्वभावपर्याय और विभावपर्याय की बात कही हैं / सब द्रव्यों में स्वभावपर्यायें होती है, किन्तु जीव और पुद्गल में विभावपर्याय भी होती है। द्रव्य और गुणों में स्वभावपर्याय भी होती है और विभावपर्याय भी होती है / जीव में जीवत्व रूप स्वभाव पर्यायें होती हैं और कर्मकृत