SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पर्याय के सिद्धान्त के आधार पर इन्हें गुणात्मक स्वरूप प्रदान किया जा सकता है जो एक मौलिक एवं वांछित योगदान होगा / सांख्यिकी के प्रसिद्ध विद्वान प्रोफेसर महालनबीस ने इस दिशा में इंगित किया था / मैंने भी सन् 1985 में आयोजित तृतीय इन्टरनेशनल जैन कान्फरेन्स में अपने लेख में इस ओर विद्वानों का ध्यान आकर्षित किया था / (द्रष्टव्य - The concept of Paryaya - A singular contribution of Jainism to world Philosophy, in proceedings of the Third International Jain conference, Ahinsa International, New Delhi, 1985) बाद में दिवंगत आचार्य श्री महाप्रज्ञजी ने भी इसी बात को अपने ग्रन्थ 'अनेकान्तवाद' में सूचित किया था / परन्तु अभी तक इस विषय पर अधिक विचार नहीं हो पाया है / देश-विदेश के गणितज्ञ एवं सांख्यिकी के विशेषज्ञों से अपेक्षा है कि इस पर शोधकर पाश्चात्यदृष्टि से प्रस्तुत परिमाणात्मक पक्ष को गुणात्मक आयाम देकर अभिवृद्धि करें / इससे कर्म के सिद्धान्त और विश्व के वैविध्य को भलीभांति समझने में सहायता मिलेगी। जैन आचार्यों ने पर्याय के सिद्धान्त की विशद व्याख्या की है और इसके अनेकानेक भेद-प्रभेद बताये हैं / प्रस्तुत ग्रन्थ में समाविष्ट लेखों में इस बिन्दू विस्तार से विचार हुआ है। आशा है इस ग्रन्थ से इसके दार्शनिक पक्ष एवं ऐतिहासिक विकास को समझने में सहायता मिलेगी। जैन नय में द्रव्य की तरह गुण और पर्याय वास्तविक हैं, प्रातिभाषिक नहीं / इनकी प्रतीति यथार्थ है और इनकी अनुभूति की प्रत्ययात्मक अभिव्यक्ति भी यथार्थ है / अतः उत्पाद-व्यय धर्मा होते हुए भी पर्याय वास्तविक हैं / प्रस्तुत ग्रंथ में इस विषय पर विस्तार से विचार हुआ है / पर्यायों की क्रमबद्धता तथा पुरुषार्थ एवं सर्वज्ञता के सन्दर्भ में इस संबंध में उठे प्रश्नों पर भी यहाँ विचार हुआ है तथा जैन मत मान्य पंचकारण समवाय के आधार पर समुचित समाधान भी प्रस्तुत हुआ है। मेरी दृष्टि में ये प्रश्न पर्यायों के परिणमन को भली भाति दृष्टि में नहीं रखने के कारण उठे हैं। पर्याय की महत्वपूर्ण एवं अनूठी अवधारणा पर अभी तक कोई व्यवस्थित एवं प्रामाणिक ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है। मैंने जैन दर्शन के अध्ययन और अध्यापन में इस विषय पर चिन्तन किया है / इसी विचार को लेकर अध्यात्म साधना केन्द्र, दिल्ली में मैंने एक राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की थी। इसमें जिन संतों एवं विद्वान-विदुषियों ने अपने आलेख प्रस्तुत किए इसके लिए उन्हें आभारपूर्वक धन्यवाद देता हूँ। इस ग्रन्थ को व्यवस्थित रूप प्रदान करने में आदरणीय जितेन्द्रभाई शाह की महत्वपूर्ण भूमिका एवं योगदान रहा है। इसके लिए इनके प्रति आभार व्यक्त करता हूँ / लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अहमदाबाद ने इस ग्रन्थ के प्रकाशन का कार्य सम्पन्न किया है एतदर्थ इसके पदाधिकारियों को धन्यवाद ज्ञापित करना चाहूंगा / आशा है सुधी पाठकों को तथा विद्याप्रेमियों को इससे ज्ञानलाभ होगा और इस विषय पर अधिक शोध करने की प्रेरणा मिलेगी। 01.01.2017 सिद्धेश्वर भट्ट भूतपूर्व आचार्य एवं विभागाध्यक्ष, दर्शनशास्त्र विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय
SR No.032766
Book TitleJain Dharm me Paryaya Ki Avdharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Bhatt, Jitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy