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________________ पर्याय की अवधारणा व स्वरूप का०८ तथा - जो णिच्चमेव मण्णदि तस्स ण किरिया हु अत्थकारित्तं / ण हु तं वत्थू भणियं जं रहियं अत्थकिरियाहिं / नयचक्र, गा०४५ 45. "अर्थक्रियाकारित्वं हि द्रव्यत्वम् / / " 46. "अर्यते गम्यते निष्पाद्यत इत्यर्थः कार्यम्" आ० अकलंकदेव कृत तत्त्वार्थवार्तिक, 1, 33 47. माइल्लधवल कृत नयचक्र, गा०४६ 48. वही, नयचक्र, गा०४६-४७ 49. आचार्य कुन्दकुन्द कृत समयसार तात्पर्यवृत्ति, गा०३५ (40) टीका 50. पज्जय-रत्तउ जीवडउ मिच्छादिठ्ठि हवेइ / बंधइ बहु-विह-कम्पडा जे संसारू भवेइ // परमात्मप्रकाश, अ०१, दो०७७ 51. दव्वाणि गुणा तेसिं पज्जाया अट्ठसण्णया भणिया / प्रवचनसार, गा०८७ 52. वही, आ० अमृतचन्द्र कृत तत्त्वप्रदीपिकावृत्ति, गा०८७ 53. प्रवचनसार, गा०१०२ 54. परिणमदि सयं दव्वं गुणदो य गुणंतरं सदविसिटुं / तम्हा गुणपज्जाया भणिया पुण दव्वेमेव त्ति // प्रवचनसार, गा०१०४ 55. पज्जयविजुदं दव्वं दव्वविजुत्ता य पज्जया णत्थि / पंचास्तिकाय, गा०१२ 56. भावस्स णत्थि णासो णत्थि अभावस्स चेव उप्पादो / गुणपज्जयेसु भावा उप्पादवए पकुव्वंति // वही, गा०१५ तथा 19 57. समयसार, गा०१०३ 58. वही, गा०१४ 59. वही, गा०१५ 60. वही, गा०१५ टीका 61. णाणं दंसण सुह वीरियं उहयकम्मपरिहीणं / तं सुद्धं जाण तुमं जीवे गुणपज्जयं सव्वं / नयचक्र, गा०२५ 62. पञ्चाध्यायी, 1, 89 63. प्रवचनसार, गाथा 93
SR No.032766
Book TitleJain Dharm me Paryaya Ki Avdharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Bhatt, Jitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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