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________________ 34 जैन धर्म में पर्याय की अवधारणा की अपेक्षा यह मधुर या अम्ल है, यह बोध कैसे होगा?२१ अतः द्रव्य और गुणों के बीच एकान्त भेद या एकान्त अभेद न मानकर, कथंचित भेदाभेद ही मानना चाहिए / द्रव्य-पर्याय का भेदाभेद - द्रव्य और गुण की भाति जैन आचार्यों ने द्रव्य और पर्याय में भेदाभेद का समर्थन किया है। आयारो में 'जे आया से विन्नाया, जे विन्नाया से आया 22 कहकर सूत्रकार ने आत्मा और ज्ञान की अभिन्नता का प्रतिपादन किया है। सामान्यतया देखने पर यह सूत्र अभेद का वाचक प्रतीत होता है, पर जैसा कि नियुक्तिकार ने कहा है - 'णत्थि जिणवयणं णयविहीणं' कोई भी जिन वचन निरपेक्ष नहीं होता, अतः आयारो का यह सूत्र भी सापेक्षता की दृष्टि से ही ग्राह्य है अर्थात् प्रत्येक आत्मा में ज्ञान का सद्भाव कुछ न कुछ अंशों में होता ही है। वह त्रिकाल में भी ज्ञानशून्य नहीं होता, अतः दोनों में अभेद है / पर ज्ञान आत्मा का परिणाम विशेष है, जो बदलता रहता है, अतः पर्याय दृष्टि से दोनों में भेद है। भगवती सूत्र में 'आया भंते सिय नाणे, सिय अन्नाणे, नाणे पुण नियमं आया 23 कहकर सूत्रकार ने आत्मा को ज्ञान से कथंचित भिन्न और कथंचित अभिन्न कहा है। कुंदकुंद ने द्रव्य और पर्याय के अविनाभाव का प्रतिपादन करते हुए यही लिखा है - पज्जयविजुद दव्वं दव्वविजुत्ता य पज्जया णत्थि / दोण्हं अणण्णमूदं भावं समणा परूविति // 23 टीकाकार अमृतचन्द्र के अनुसार जिस प्रकार दूध, दही, घी आदि से भिन्न गोरस नहीं होता, वैसे ही पर्याय से रहित द्रव्य नहीं होता / सिद्धसेन दिवाकर के अनुसार द्रव्यार्थिक नय का विषय है - द्रव्य और पर्यायार्थिक नय का विषय है - पर्याय / दोनों नय अलग-अलग मिथ्यादृष्टि हैं / दोनों में से किसी एक नय का विषय सत् नहीं बन सकता। सामान्य और विशेष दोनों मिलकर ही सत् बनते हैं / अतः द्रव्य-पर्याय परस्पर संबद्ध है। . द्रव्य से रहित पर्याय और पर्याय से रहित द्रव्य का अस्तित्व ही नहीं होता / इसी बात को आवश्यकनियुक्ति में इस प्रकार कहा गया है - जं जं जे जे भावे परिणमइ पओग वीससादव्वं / तं तह जाणाह जिणे अपज्जवे जाण नत्थि // __ अर्थात् प्रयोग और स्वभाव से जो-जो द्रव्य जिस-जिस भाव में परिणत होता है, केवली उसे उसी रूप में जानते हैं / पर्याय रहित द्रव्य को नहीं जाना जा सकता / इसका तात्पर्य यही है कि पर्याय रहित द्रव्य होता ही नहीं है।
SR No.032766
Book TitleJain Dharm me Paryaya Ki Avdharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Bhatt, Jitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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