________________ पज्जयमूढा हि परसमया राकेश कुमार जैन विश्वदर्शनों में जैन दर्शन का अपना विशिष्ट स्थान है। जैनदर्शन ने द्रव्य-गुण-पर्यायात्मक विश्वव्यवस्था को जितने सुन्दरतम तथा सत्यार्थ स्वरूप के साथ रखा है, उससे विज्ञान-जगत् भी भौंचक है, आश्चर्यचकित है। साथ ही अनेक सन्दर्भो में विज्ञान-जगत् ने जैनदर्शन से मार्गदर्शन प्राप्त किया है, अनेक विज्ञान-जगत् की शोधपूर्ण खोजें जैनदर्शन में पहले से ही विद्यमान हैं, पौद्गलिक शक्तियों का जो वर्णन जैनदर्शन में विद्यमान है, उससे और भी दिशा-निर्देश ग्रहण किये जा सकते हैं / जैन दर्शन के उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मक' तथा नित्यानित्यात्मक अनेकान्त स्वरूप ने जहाँ एक तरफ भारतीय दर्शनों में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई, वहीं पाश्चात्य दर्शन के अनेक दार्शनिक-हेरेक्लीट्स, सॉक्रेटीज्, प्लेटो, एरिस्टॉटल, जीनो, एपीक्यूरस, पायथागोरस, प्रोक्तस आदि स्पष्टतः जैनदर्शन के महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों से सहमत दिखाई देते हैं। वस्तु स्वयं अनेकान्तात्मक है, अतः अनेकान्तवाद, स्याद्वाद तथा नयवाद के बिना उसके स्वरूप को जान पाना तथा उसका कथन संभव नहीं है। पर्यायमूढ़ता भी एकान्तवाद का ही एक प्रकार है, अतः इस विषय के माध्यम से हम एकान्तवाद पर अनेकान्त की विजय का ही ध्वज फहराना चाहते हैं / सर्वप्रथम मंगलाचरण के रूप में निम्न श्लोक के द्वारा अनेकान्तमयी धर्म को नमस्कार करता हूँ - परमागमस्य जीवं निषिद्धजात्यन्धसिन्धुरविधानम् / सकलनयविलसितानां विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् // अर्थ - जात्यन्ध पुरुषों के द्वारा कथित हाथी के विधान का निषेध करने वाले, तथा समस्त नयों के द्वारा प्रकाशित वस्तु के स्वभावों के विरोध को दूर करने वाले, उत्कृष्ट जैनसिद्धान्त के प्राणस्वरूप अनेकान्त धर्म को मैं नमस्कार करता हूँ। इस विषय पर यह मेरा लघुप्रयास है, मेरा समस्त विद्वद्गणों से सानुरोध निवेदन है कि यदि