________________ द्रव्य, गुण और पर्याय का पारस्परिक सम्बन्धःसिद्धसेन दिवाकरकृत 'सन्मति-प्रकरण' के विशेष सन्दर्भ में 125 तत्त्वमीमांसा एवं ज्ञानमीमांसा को अन्तर्भावित करने का प्रयास किया है। अनेकान्त के आधाररूप इस द्रव्य, गुण, पर्याय के सन्दर्भ में सिद्धसेन के विचार जहाँ अनेक अंशों में आगम-विचार-सरणि का समर्थन करते हैं वहीं, उनके कतिपय स्वोपज्ञ मन्तव्यों की भी पुष्टि करते हैं / संदर्भ 1. जैनेन्द्र व्याकरण 4:1:158 2. तत्त्वार्थसूत्र 5/29 3. प्रवचनसार, ज्ञेयाधिकार-३ 4. अनुयोगद्वार 255 4. Dr. Padmarajiah, Jain theories of Reality and Knowledge, Jain Sahitya Vikas Mandal, Bombay 1963 p.26 6. तत्त्वार्थसूत्र 5/29 7. सन्मतिप्रकरण 1/12 8. वही-१/३१ 9. धवला 1/1/1/1/17/6 10. आचारांगसूत्र 1/1/5 11. तत्त्वार्थसूत्र 5/41 12. जैनसिद्धान्त दीपिका 1/38, जैनेन्द्रसिद्धान्त कोश, भाग-२, पृ.२४३ 13. तत्त्वार्थवार्तिक 27 14. स्वभावविभावरूपतया याति पर्येति परिणमतीति पर्याय इति पर्यायस्य व्युत्पत्ति, नयचक्र, श्रुत. पृ.५७ 15. उत्तराध्ययन 28/6 16. तत्त्वार्थराजवार्तिक 1/31, 1/15, धवला पु० पृ०८४ 17. सर्वार्थसिद्धि-१/३३ 18. तत्त्वार्थसूत्र 5/41 19. पंचास्तिकाय ता० वृ०१६/३५/१२ 20. सन्मति-प्रकरण 1/30 पर पं०सुखलालजी एवं पं० बेचरदासजी का विवेचन 21. उत्तराध्ययन 28/13 22. क्रियावद् गुणवत् समवायिकारणं द्रव्यम्, वैशे० सूत्र 1/1/15 23. सन्मति-प्रकरण 3/8 24. सन्मति-प्रकरण 3/8 पर पं०सुखलालजी की व्याख्या पृ०६३ 25. ढाल 2, दोहरा-१० सन्मति-तर्क-प्रकरणम्, अभयदेवसूरिकृत वृत्ति, सूत्र 3/8 की व्याख्या में उद्धृत / 26. पंचास्तिकाय 46