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________________ 91 जैनदर्शन में द्रव्य-गुण-पर्याय भेदाभेदवाद की अवधारणा सन्मति प्रकरण में लिखा है - एगदवियम्मि जे अत्थपज्जया वयणपज्जया वा वि / तीयाणागय भूया तावइयं तं हवइ दव्वं // 1/31 एक द्रव्य के भीतर जो अतीत, वर्तमान और अनागत अर्थ पर्याय तथा शब्द अर्थात् व्यञ्जन पर्याय होते हैं, वह द्रव्य उतना होता है / आचार्य अभिनवभूषण ने लिखा है - __ "व्यञ्जन व्यक्तिः प्रवृत्ति निवृत्तिनिबन्धनं जलानयनाद्यर्थक्रियाकारित्वम् तेनोपलक्षितः पर्यायो व्यञ्जन पर्यायः, मृदादेः (यथा) पिण्ड-स्थास-कोश-कुशूल-घटः कपालादयंपर्यायाः // न्यायदीपिका पृ.१२० व्यक्ति का नाम व्यञ्जन है और जो प्रवृत्ति निवृत्ति में कारणभूत जल के ले आने आदि रूप अर्थक्रियाकारिता है वह व्यक्ति है, उस व्यक्ति से युक्त पर्याय को व्यञ्जन पर्याय कहते हैं अर्थात् जो पदार्थों में प्रवृत्ति और निवृत्ति जनक जलानयन आदि अर्थक्रिया करने में समर्थ पर्याय है, उसे व्यञ्जन पर्याय कहते हैं / जैसे मिट्टी आदि का पिण्ड, स्थास, कोश, कुशूल, घट और कपाल आदि पर्याय हैं / पर्याय को ऊर्ध्व पर्याय एवं तिर्यक् पर्याय के रूप में भी वर्गीकृत किया जा सकता है, जैसे भूत, भविष्य और वर्तमान के अनेक मनुष्यों की अपेक्षा से मनुष्य की जो अनन्त पर्यायें हैं, वे तिर्यक् पर्याय कही जाती हैं / यदि एक ही मनुष्य के प्रतिक्षण होने वाले परिणमन को पर्याय कहें तो वह ऊर्ध्व पर्याय है। "पर्यायव्यतिरेकभेदात्" / एक द्रव्य में क्रम से होने वाले परिणामों को पर्याय कहते हैं / जैसे आत्मा में हर्ष-विषाद आदि परिणाम क्रम से होते हैं, वे ही पर्याय हैं / एक पदार्थ की अपेक्षा अन्य पदार्थ में रहने वाले विसदृश परिणाम को व्यतिरेक कहते हैं / जैसे गाय, भैंस आदि में विलक्षणपना पाया जाता है। एक अन्य प्रकार से भी पर्यायों के दो भेद बताये गये हैं - द्रव्य और गुण पर्याय / अनेक द्रव्यस्वरूप की एकता के ज्ञान का जो कारण हो उसे द्रव्य पर्याय कहते हैं, जैसे अनेक वस्तुओं से बनी हुई को एक यान या वाहन कहना / यह द्रव्य पर्याय दो प्रकार की होती है एक समान जातीय, दूसरी असमान जातीय / समान जातीय उसे कहते हैं कि दो, तीन, चार आदि परमाणुरूप पुद्गल द्रव्य मिलकर जो स्कन्ध हो जाते हैं वे अचेतन के साथ अचेतन के सम्बन्ध से होते हैं, इसलिए समान जातीय द्रव्य पर्याय कहलाते हैं / जीव जब दूसरी गति को जाता है तब नवीन शरीर रूप नोकर्म पुद्गल को लेता है। उससे मनुष्य, देव आदि पर्याय की उत्पत्ति होती है / चेतन रूप जीव के साथ अचेतन रूप पुद्गल के मिलन से जो पर्याय हुई यह असमान जातीय द्रव्य पर्याय कही जाती है। ये समान जातीय तथा असमान जातीय अनेक द्रव्यों की एक रूप द्रव्य पर्यायें जीव और पुद्गल में ही होती हैं तथा अशुद्ध ही होती
SR No.032766
Book TitleJain Dharm me Paryaya Ki Avdharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Bhatt, Jitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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