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________________ लोककौशल्यपरिच्छेदः। उच्चैवृत्ति सपुष्करव्यतिकरं संसारविष्कम्भकं भिन्द्याद्वो भरतस्य भाषितमिव ध्वान्तं पयो यामुनम् // 34 // चाणा(ण)क्यपरिचयो यथा-- स्वामी प्रमोदेन मदेन मन्त्री, कोपेन राष्ट्रं व्यसनेन कोशः / छिरेण दुर्ग विषमेन सैन्य, लोभेन मित्रं क्षयमेति राज्ञाम् // 35 // 5 वात्स्यायनपरिचयो यथा---- अधरे बिन्दुः कण्ठे मणिमाला कुचयुगे शशिप्लुतकम् / तव सूचयन्ति सुन्दरि कुसुमायुधशास्त्रपण्डितं रमणम् // 36 // [कुट्टनीमत, श्लोक 403] धनुर्वेदीयः 10 सदक्षिणापाङ्गनिविष्टमुष्टिर्नतांशमाकुञ्चितसव्यपादम् / ददर्श चक्री कृतचारुचापं प्रहर्तुमभ्युद्यतमात्मयोनिम् // 37 // [कुमारसम्भव, स. 3, श्लोक. 70 ] उत्पाद्यसंयोगः उभौ यदि व्योम्नि पृथक्प्रवाहावाकाशगङ्गापयसः पतेताम्। 15 तेनोपमीयेत तमालनीलमामुक्तमुक्तालतमस्य वक्षः // 38 // [माघकाव्य, स. 3, श्लो. 8] भारतपरिचयो यथा-- भगदत्तप्रभावाद्या कर्णशल्या कूटस्वना / सेनेव कुरुराजस्य कुट्टिनी किन्तु निष्कृपा // 39 // 30 रामायणपरिचयो यथा उपशमितमेघनादं प्रज्वलितदशाननं मुदितरामम् / रामायणमिव सुभगं दीपदिनं हरतु दुरितं वः // 40 // यथा वा जनस्थाने भ्रान्तं कनकमृगतृष्णान्धितधिया ___वचो वैदेहीति प्रतिपदमुदश्रु प्रलपितम् / कृता लङ्का भर्तुर्वदनपरिपाटीषु घटना मयाप्तं रामत्वं कुश-लवसुता न त्वधिगताः // 41 // [–अभिनन्दस्य]
SR No.032755
Book TitleKavyashiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaychandrasuri, Hariprasad G Shastri
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1964
Total Pages228
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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