________________ क्रियानिर्णयपरिच्छेदः / [43 ददाति--दुदाङ् डुभृन धा० भू० / संधयतिट्वें पा पाने भू० // 32 // स्निह्यति—स्निह प्रीतौ दि० / स्नेहयति—स्निह स्नेहने चु० // 33 // आलिङ्गति–उख लिङ्गि० भू० / लिङ्गयति—-लिङ्ग विचित्री० चु० // 34 // घोषति-घुषिरु शब्दे भू० / घोषयति-घुषिरु विशब्दे चु० // 35 // व्याघोटते-घुट परिवर्तने भू० / व्याघुटति-घुट प्रतिघाते तु०॥ 36 // व्याहोडते-होड़ अनादरे भू० / ब्याहोडति—हुड हूट गतौ भू० // 37 // श्रन्थते-श्रन्थ शैथिल्ये भू० / श्रथयते-स० [चु० ] // 38 // भाजयति–पट पुटेत्यादौ भज भाषार्थाः चु० / संविभजति—भज श्रिञ् सेवायां भू० // 39 // मन्दते—मदि स्तु० भू० / मन्दायते—मन्दाय कण्ड्वा० // 40 // 10 उद्विजते-उद्विजी० तु० / उद्विनक्ति-उद्विजी० रु० // 41 // क्षिप्यति—क्षिप प्रेर० चु० (दि०)। क्षिपति—क्षिप प्रे० तु० // 42 // क्रीडति-क्री विहारे भू० / किलति-किल सै(शै)त्यक्रीडनयोः तु० // 43 // चेतति-चिती सं० भू० / चेतयते—चित संवेदने चु० // 44 // लुभ्यति—लुभ गाये दि० / लुभति-लुभ विमोहने तु० // 45 // 15 भर्जते-भृजी भर्जने भू० / भृजति-भ्रस्ज पाके तु० // 46 // क्षाम्यति च / बृंहिरे बाधति त्यक्षध्वम्—इत्यादि क्रिया अशुद्धाः / स्फायन् वलन् सूत्रबलात् शुद्धाः / आसेतिवादिका जह्यादिति असभ्या इत्यादि क्रियापदानि दुष्टानि / इत्थं काव्यक्रियां ज्ञात्वा नानाग्रन्थेषु दर्शिताम् / काव्यं कुर्वीत मेधावी विनयस्तस्य कार्मणम् // 98 // इत्याचार्यश्रीविनयचन्द्रलिखितायां काव्यशिक्षायां विनयाङ्कायां क्रियानिर्णयो नाम द्वितीयः परिच्छेदः //