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________________ 32] काव्यशिक्षा गल्हते गर्हते [ चैव ] बीभत्सति च गर्हति / कुत्सयते शपते च शप्यत्याक्षिपति क्रुघा // 81 // शप्यते शपत्याक्रोशत्याक्रोशेऽथ च लज्जते / बाला हीच्छति जिहेति व्रीडति त्रपते तथा // 82 // रोदते स्वदते भक्तं स्वादते स्वर्दते तथा / तृप्यति ध्रायति प्रीयते प्रीतौ प्रीणयत्यथ // 83 // धिनोति संबोधयति पृणोति सुखयत्यसौ / प्रीणात्याह्लादयत्याह्लादयते [च] स बोधते // 84 // तृप्नोति तर्पयति च तर्पयते सुखयते / आकारयत्याह्वयत आमन्त्रयत्याह्वयति // 85 // आमन्त्रयते स्निह्यति मेदत ईक्षते च पूषति प्रीत्या / तुष्यति माद्यति पुष्यति कति खर्वति च विचिनोति // 86 // विचिनोत्यवेक्षतेऽसावन्विष्यति मृगयते गवेषयते / अन्वेषते च मार्गति मार्गयति चिनोति मार्गयते // 87 // आलोकयति लोकते विलोकते च पश्यति / निभालयति भालयते रूपयति रूपयते // 88 // गवेषयत्यालोकार्थाः परा-नि-परि-वर्तते / व्यावर्तते घोटते च वलति व्याघोटनार्थाः // 89 // उन्न्युपदिग्धे छुरति [तथा] रिप(? फ)ति लिम्पति / उपदेहे विकिरति विक्षेपे विक्षिपत्यपि // 90 // संग्रामयति च जवति च संग्रामयते च संप्रहरति भटः / जञ्जति युध्यत्यर्दति [च] युध्यते ताडयत्याशु // 91 // शक्नोति संगतेर्जन्तुः स्नुह्यते प्रभवत्यलम् / तरति प्लवते ज्ञानपोतेन भववारिधिम् // 92 // कन्दति कदति क्रन्दत्याक्रोशति च कुन्दति / कुन्दते क्रन्दते कूदते शोके' .... .... // 1. अतः परं पद्यरचनाया लोपः /
SR No.032755
Book TitleKavyashiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaychandrasuri, Hariprasad G Shastri
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1964
Total Pages228
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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