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________________ 28 // काव्यशिक्षा विचिन्तते विमृशतेऽथाधिगच्छति तर्कते / उत्प्रेक्षते संभावयत्यूहते तर्कयत्यपि // 27 // परिविगणयति निरूपयते परि[वि]गणयत इह परामृशति / मीमांसते निरूपयति मनोत्यालोचते मनुते // 28 // आलोचयत्युत्पश्यति विचारयति मन्यते / आलोचयते [च] विचारयते च स्युर्विचारणे' // 29 // चिन्तयत्यध्ययति [च] ध्यायति स्मरति स्मृतौ / चिन्तयते भावयते परिभावयतीत्यपि // 30 // रसयते रासयते पिबत्याच(चा)मति ध्रुवम् / धयति भू(चू )पति लेढीत्येते पानार्थवाचिनः // 31 // शृणोत्याकर्णयति च निशामयति च श्रुतौ / क्रोड्यङ्कपालीकुरुते च चितां परिष्वजते // 32 // परिरभते स्पृशति [च] परामृश्यत्याश्लिष्यति / . आलिङ्गत्युपगृहते स्पर्शे जिघ्रति लिम्पति // 33 // . संशेते विशङ्कते भ्राम्यति भ्र]मति रेवति(ते) / विभ्राम्यति तर्कयति कल्पयति चिकित्सति // 34 // [सं]शेते [परा] मृशत्यान्दोलयते संशयार्थाः / विस्फूजेति स्मरति च प्रस्मरतीति विस्मृतौ // 35 // निश्चिनोति चिनुते नयत्यवधारयति च / अवस्यति निश्चयार्थे मारयति मारयते // 36 // मीनीते द्रूणीते क्षणोति क्षुण(क्षणु)ते हिनस्ति संहरति / क्षु(क्षि)णुते तृणेढि कर्षति विशसति सूदयति तक्ष्णोति // 37 // दूणाति मीनाति कृणाति हन्ति प्रमाथयत्येषति संक्षुणोति / विदारयत्यर्दयते क्षिणीते निबर्हति प्लुष्यति तक्ष्णुते च // 38 // प्रोषति प्लोषति श्रोष(ण)ति श्लोष(ण)ति दहत्यपि / ' लुम्पति शुम्भति हन्तावासादयति विन्दति // 39 // 1. प्रतौ 'आलोचयति विचारयति विचारयते एते स्युर्विचारणे' इति पाठः / 25
SR No.032755
Book TitleKavyashiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaychandrasuri, Hariprasad G Shastri
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1964
Total Pages228
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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