________________ [ 121 10 अनेकार्थशब्दसंग्रहपरिच्छेदः / नन्वाक्षेपे परिप्रश्ने प्रत्युक्ताववधारणे / वाक्यारम्भेऽप्यनुनयामन्त्रणा-ऽनुज्ञयोरपि // 111 // नाना विनोभयानेकार्थेषु स्थाने तु कारणे / युक्ते साम्येऽप्यप स्तेयेऽपकृष्टे वर्जने मुदि // 112 // विपर्यये च योगे च निर्देशे विकृतावपि / अपि सम्भावना-शङ्का गर्हणासु समुच्चये // 113 // प्रश्ने युक्तपदार्थेषु कामचारक्रियासु च / उपासन्नेऽधिके हीने सादृश्य-प्रतियत्नयोः // 114 // अभि वीप्सा-लक्षणयोरित्थंभूता-ऽऽभिमुख्ययोः / स्यादमा सन्निधानार्थे [सहाथै]ऽलं निवारणे // 115 // अलंकरण-सामर्थ्य-पर्याप्तिष्ववधारणे / एवं प्रकारेऽङ्गीकारेऽवधारण-समुच्चयोः // 116 // कथं प्रश्ने प्रकारार्थे संभ्रमे संभवेऽपि च / किमु संभावनायां विमर्श जोषं सुखे स्तुतौ // 117 // मौन-लङ्घनयोश्चापि नाम प्राकाश्य-कुत्सयोः / संभाव्या-भ्युपगमयोरलीके विस्मये क्रुधि // 118 // नूनं तर्के निश्चिते च माध्वं नर्मा-ऽनुकूलयोः / भृशं प्रकर्षेऽत्यर्थे च सामि त्वर्दै जुगुप्सिते // 119 // अयि प्रश्नेऽनुनये स्याद् अये क्रोध-विषादयोः / संभ्रमे स्मरणे चान्तरन्ते स्वीकार-मध्ययोः // 120 // ऊरर्युरी चोररी च विस्तारेऽङ्गीकृतावपि / पराभिमुख्ये प्राधान्ये विमोक्ष-प्रातिलोम्ययोः // 121 // किल संभाव्य-वार्तयोः खलु वीप्सा-निषेधयोः / नीचैः स्वैरा-ऽल्प-नीचेषु प्रादुर्नाम-प्रकाश्ययोः // 122 // [ पुरोऽग्रे प्रथमे च स्यात् ] मिथोऽन्योन्यं रहस्यपि / अह क्षेपे नियोगे च आहो प्रश्न विचारयोः // 123 // 15