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________________ [99 अपार बीजव्यार्णनपरिच्छेदः / शिवागमविचारज्ञः षट्पदार्थोपवर्णकः / एकबासाः करक्रोडकमण्डलुविराजितः // 149 // अथ साख्यः-पञ्चविंशतितत्त्वज्ञस्त्रिदण्डी रक्तकर्पटः / स्नानभोजी कराम्भोजस्वर्णमुद्रापवित्रितः // 150 // कपिलाख्यातसिद्धान्तपारगो ब्रह्मचर्यमृत् / श्रीखण्डतिलकी तीर्थवासी नाशितकिल्बिषः // 151 // अथ चार्वाकः-पञ्चभूतार्थवेदी च तत्त्वोपप्लवकारकः / अध्यक्षः(?क्ष)प्रमितेर्वक्ता पुरुषार्थविदूषकः // 152 // अथ कविः- शब्दार्थवादी तत्त्वज्ञो माधुर्सेजःप्रसाधकः / दक्षो वाग्मी नवार्थानामुत्पत्तिप्रियकारकः // 153 // शब्दार्थवाक्यदोषज्ञश्चित्रकृत् कविमार्गवित् / ज्ञातालङ्कारसर्वस्वो रसविद् बन्धसौष्ठवी // 154 // षड्भाषाविधिनिष्णातः षड्दर्शनविचारवित् / नित्याभ्यासी च लोकज्ञश्छन्दःशास्त्रपटिष्ठधीः // 155 // सज्जन:- स्वगुणाच्छादकः कृत्यवेदी परगुणप्रियः / पीयूषकल्पवचनः परसूक्तियशस्करः // 156 // परापवादनिष्णातः परकाव्यविदूषकः / सदाभिमानी दुर्ध्यानी नीचसेवापरायणः // 157 // चौरः- उद्बद्धपिण्डिका(?को) लोललोचन[:] क्षत्रपापकृत् / असत्यवादी मायावी सधैर्यो बहुवेषभृत् // 158 // वालुकाक्षेपको रात्रौ शकुनज्ञो दयोज्झितः। तालोद्घाटनविद्याज्ञश्चुम्बकभ्रामकाश्मभृत् // 159 // दुर्जनः अथ अर्थोत्पत्तिबीजानि पद्मं सरः पयोराशी रोहणादिदिनेश्वरः / - चन्द्रो नभस्तलं गङ्गा पृथ्वी भण्डारमन्दिरम् // 160 //
SR No.032755
Book TitleKavyashiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaychandrasuri, Hariprasad G Shastri
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1964
Total Pages228
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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