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________________ काव्यशिक्षा पालीप्रोद्गतवृक्षालीपमिनीसंक्रमावृतम् / तीरस्थक्रौञ्चहंसादिस्वरपूरितदिग्मुखम् // 112 // प्राकार:- भैरवादिमहायन्त्रस्फुरद्विद्याधरीवृतम् / नानामारयुतं वनं कपिशीर्षानदारुवत् // 113 // 5 प्रतोली-- वज्रद्वारकपाटाढ्या नाराचशतसंकुला / चण्डिकाक्षेत्रपालादिमूर्तियुग्द्वारपालवत् // 114 // ग्राम:-- नृत्यादिमण्डितः स्फुर्जद्गोधनः पामरावृतः / निविष्टफलम्नी(दो) लोकन्यस्तस्तोकापणः खलु // 115 // वृक्ष:- पत्रपुष्पफलाकीर्ण आवापपरिमण्डितः / 10 . दोहदेन कृतोल्लासो निवासः सर्वपक्षिणाम् // 116 // गौः- कुण्डोनी सुव्रता कण्ठपीठीबद्धसुघण्टिका / वत्सानुगा शुभाकारा साक्षात् कामगवीसमा // 117 // शण्ड:- शूलाङ्कितः स्वैरचारी पीवरः स्कन्धबन्धुरः / पादनूपुरझङ्कारी भाङ्कारैः पूरिताम्बरः // 118 // 15 प्रवहणम्- प्रतिष्ठानमनोहारि जलद्रोणीविभूषितम् / कूपस्तम्भजिनोदग्रं स्फुरद्ध्वजपटाकुलम् // 119 // सुवर्णदृष्टिरुचिरमरित्रैः परिपूरितम् / चटसैाह्यमाणाम्बु ध्वजछत्रसमाकुलम् // 120 // शुक्रवारे तदापूर्यं निवाजक्रिययान्वितम् / उपहारमनोहारि वादेवीपूजयाञ्चितम् // 121 // धीवराः- स्वनामवद् ये जानन्ति गिरीन् दन्तांश्च दुर्गमान् / अञ्जनान् वेत्रवलयानावांश्च झषांस्तथा // 122 // प्रवहणभङ्गः-स्मरन्ति देवताः कुल्याः रहमाणं विशेषतः / सुक्कानं' धार्यते स्थाम्ना कूपस्तम्भस्तु पात्यते // 123 // 1 प्रतौ तु 'शुकाणं' इति पाठः / 'सुक्कान' इति अरबीभाषायाम् / सं० .....
SR No.032755
Book TitleKavyashiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaychandrasuri, Hariprasad G Shastri
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1964
Total Pages228
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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