________________ बीजव्यावर्णनपरिच्छेदः / सर्वज्ञोपासनाभिज्ञो ज्ञानदर्शनपावनः / चारुचारित्रपूताङ्गः समितिगुप्तिसङ्गतः // 64 // उत्तीर्णभवकान्तारः कान्तारागपराङ्मुखः / परीषहचमूजेता विनेता मोहमालिनाम् // 65 // जातिवान् रूपसंपन्नो धीमान् तत्त्वार्थपारगः / अविकत्थनो नो मायी जितनिद्रो बहुश्रुतः // 66 // मध्यस्थो देशकालज्ञः सर्वभाषासु कोविदः / प्रियधर्मा दृढधर्मा संविग्नस्तेजसां निधिः // 67 // कंसे संखे जीवे गगणे वाऊय सारय(इयर)सलिले / पुक्खरपत्ते कुमुए विहगे खग्गे य भारंडे // 68 // कुंजरवसहे सीहे नगराया चेव सागरे खोभे / चंदे सूरे कणगे वसुंधरा चेव अग्गिमि // 69 // व्याख्या-कंसपतीव निरवलेवो। संखो इव निम्मलो / जीव इव अप्पडिबद्धो / गयणमिव निरालंबणो। वाउव्व सव्वदेसविहारी / सायरसलिलं व सुद्धहियओ इत्यादि आलापका उत्पद्यन्ते / ब्राह्मण:- षट्कर्मनिरतो नित्यं भिक्षाशूरो बहुश्रुतः / पुराणवेदतत्त्वज्ञो विशुद्धाक्षरपाठकः // 7 // विशुद्धाक्षराणि उदात्तानुदात्तसमाहारभेदैः / होमकर्मप्रवीणात्मा त्रिसंध्यं स्नानपावनः / सन्ध्यावन्दननिष्णातः शिखी तिलकमण्डितः // 7 // कुशाङ्कितकरः स्वाहाप्रियस्याहुतिदायकः / दधानः पाणिराजीवे यष्टिका-करपत्रिके // 72 // दधानो दण्डकं स्कन्धे जरद्वस्त्रः प्रदीनगीः / श्वदन्तक्षतिसम्बद्धपट्टको याचने पटुः // 73 // क्रमुकस्य त्वचा भिक्षापुटी बिभ्रत्करान्तरे / 'दीयतां दीयतां देहि'वचः प्रोच्चैः समुच्चरन् // 74 // 15 20 20