________________ 344 पंचमं परिशिष्टम् पृष्ठम् प्रलोकादि शेलुः श्लेष्मातकः शीतो पृष्ठम् 170 प्रलोकादि शारिवाऽन्या कृष्णमूला . [धन्व. 1-162 प० 38] शारिवा फणिजिह्वा च ] शारिवा शारदी गोपी [धन्व० 1-161 50 38] शालपर्णी स्थिरा सौम्या धन्व० 1-87 5023] शाल्मली रक्तपुष्पा च धन्व० 5-127 प० 195] शाल्मली वेष्टकः पिच्छा धन्व. 5-126 प. 195] शिग्रुः स्यात् *वेतमरिचं 149 श्यामा तु महिलाह्वया [अमर. का. 2 वर्ग 4 55] 105 श्रावणी श्राविता पूर्व ] 120 प्रलोकादि - पृष्ठम् श्रावणी स्यान्मुण्डनिका धन्व० 1-159 प० 37] 120 श्रीपर्णमग्निमन्थः स्यात् [अमर० का० 2 वर्ग 4-66] 48 श्लेष्मातकः कबुदारुः [धन्व० 5-94 प० 188] 67 श्वेतदूर्वा तु गोलोमी / धन्व० 4 - 144 प० 163] 204 श्वेतपुष्पा मृगाक्षी च . [धन्व० 1-252 50 59] 169 39 शिग्रहरितशाकोऽन्यो षष्टिकः कङ्गुकः पीत ] 209 शितिवारः शितिवरः धन्व० 1-155 प० 36] शिरीषो मृदुपुष्पश्च धन्व० 5-112 प० 192] 13 शिंशपातु महाश्यामा [धन्व० 5-12150 194] ___40 शुक्रमाता च कासघ्नी / धन्व० 1-69 प० 2.] शुक्लाऽजाजी कणा ख्याता ] 183 शुङ्गी वटाऽऽम्रातकयोमहेश्वर ] 29 शुण्ठी महौषधं विश्वा [धन्व० 2-82 10 86] शून्येश्वरस्तु कान्तारः 1 [वाचस्पति शृङ्गी कर्कटशृङ्गी च [धन्व० 1-85 प० 22] शेफालिकाऽन्या निर्गुण्डी | [धन्व० 4-83 50 150] 104 स एवोक्तः शैखरिको वन्व. 1-261 प० 60] सप्तपर्णः शुक्तिपर्ण [धन्व० 3-80 50 112] सप्तपर्णो बृहत्त्वक् च 55 54 115 ] 201 सप्तपर्णो विशालत्त्वक् [अमर० का० 2 वर्ग 4-23] स प्रोक्तः पृथुशिम्बिश्च [धन्व० 1-115 प० 28] सरलः पूतिकाप्ठं च [धन्व० 3-78 प० 111] सर्जकश्चाश्वकर्णश्च [धन्व० 5-123 प० 194] 60 58