________________ हैमनिघण्टुशेषटीकान्तर्गताः संस्कृतशब्दयुता लोकभाषाशब्दाः। 317 . फंगा-शुषा- वारिपर्णी पानीया पृष्ठगा [पानीयपृष्ठगा पु० नि०] कुम्भिका हठ / नीलिका--जलशूक जलनीली नीली शैवाल शैवल [शेवाल शेपाल शेवल टी०] 335 / सोआ- शतपुष्पा घोषा शताह्वा माधवी मिसि [मिषि नि०] अतिच्छत्रा छत्रपुष्पी [छत्रपुष्पा नि. अवाक्पुष्पा कारवी सहा 336 / "श्वेतजीरा--जीरक कणा अजाजी जरण कणजीरक / "कालउ-जीरउ--कारवी पृथ्वी सुगन्धा सुषवी [तुषवी नि०] पृथु 337 कुञ्ची [उपकुच्ची नि० कुञ्चिका पु० नि०] काला उपकाला उपकुञ्चिका - उत्कुञ्चिका। लहसणु --रसोन लशुन म्लेच्छकन्द अरिष्ट महौषध 338 महाकन्द / लहसणविशेष--गृजन दीर्घपत्रक / / डूंगली--पलाण्डे यवनेष्ट सुकन्द [कुकन्द पु०] वक्त्रदूषण [वक्त्रभूषण पु० नि०] 339 हरण [करण पु० नि०] / नीलकुंगली-लतार्क दुर्द्वम् / 'साथरि-सप्तला बहुफेना सातला विमला [बिन्दुला पु० नि० अमला पु० अमली नि० ] 340 सारी मरालिका दीप्ता फेना चर्मकसा [चर्मक्सिा पु० नि०] यवा / प्रसारणी-प्रसारणी चारुपी भद्रपर्णी प्रतानिका 341 भद्रबला भद्रलता भद्रकाली महावला सारणा [ सारणी पु० नि० ] सरणा [सरणी पु०] सुप्रसरा [ सुप्रसारा नि• ] राजबला 342 / "ब्राह्मी–बाह्मी वयःस्था मत्स्याक्षी ब्राह्मणी सोमवल्लरी सरस्वती सत्यवती सुस्वरा ब्रह्मचारिणी "सूरणकन्द-पूरण कण्डूर कन्द अर्शोघातिन् चित्रदण्डक / "वृद्धारा--वृद्धदारक [वृद्धद्वारुक पु. नि०] आवेगिन् जीर्णवालक [ जीर्णवालुक नि० ] जुङ्गक 344 अजाण्डी [:छगलाण्डी टी० ] ऋक्षगन्धा [ वृक्षगन्धा टी० ] अन्तःकोट पुष्पी [अन्तः कोटरपुष्पी पु० अन्तकोटकपुष्पी नि०] / सूचलि--सुवर्चला मण्ड्की बदग [ वरदा पु० ] आदित्यवल्लभा 315 मण्डूकपर्णी अर्कभक्ता आदित्यवल्ली सुखोद्भवा [ सुखोद्भिदा नि० ] / "भांगरउ--भृङ्गराज भृङ्गरजस् भृङ्गार केशरञ्जन 346 अङ्गारक [ अङ्गारुक पु० अमारक नि० ] भेकरजस् भृङ्ग मार्कव / "कासंदउ-कासमर्द [ काशमर्द पु० ] अरिमर्द काल कनक [ कतक पु. नि० ] कर्कश [ कत ककर्कश नि० ] 347 / 1. (1) जळकुम्भी (2) जळशंखला // 2. सेवाळ // 3. (1) सवा (2) सूवा // 4. धोलु जीरु // 5. शाहजीरं // 6. लसण // 7. डुगळी॥ 8. (1) चीकाखाई '2) सीकाखाई // 9. गंधभाडुलिया ( बंगाले ) // 10. (1) बाम ( 2 ) नेवारी (3) नीरब्राह्मी / / 11. सूरणकन्द // 12. वरधारो // 13. सुरजमुखी // भांगरो॥ 14 (1) कासुन्द्री (2) सुन्दरसेण (पंचमहालप्रदेशे ) //