________________ ( 70 ) अनसुनी कर दी, उस भवन में प्रवेश किया। भीतर जाकर उसने सुनहले पलंग पर बैठी एक सर्वाङ्गसुन्दरी कुमारी को देखा। कुमारी राजकुमार को देख कर खड़ी हो गयी और कुमार के असाधारण लावण्य से मुग्ध तथा कामात होकर बेसुध हो गयी। राजकुमार ने उसे आश्वस्त करते हुए उसकी सहचरी से उसके मोह का कारण तथा उसका परिचय पूछा / सहचरी ने बताया कि यह गन्धर्वराज विश्वावसु की कन्या है / इसका नाम मदालसा है / पातालकेतु नाम का दानव इसे चुरा कर यहाँ ले आया है / वह बलात् इसे अपनी पत्नी बनाना चाहता है / अागामी त्रयोदशी को इससे विवाह करने का उसने निश्चय किया है। उसके इस कर निश्चय को जान कर कल यह अात्महत्या करने जा रही थी पर गोमाता सुरभि ने इसे रोक दिया और कहा कि वह दानव तुमसे विवाह न कर सकेगा / तुम्हारा विवाह तो शीघ्र ही एक ऐसे मनुष्य के साथ होगा जो मर्त्य लोक से यहाँ आयेगा और उसके बाण से उस दानव की मृत्यु होगी। मैं इसकी सखी हूँ। मेरा नाम कुण्डला है / मैं विन्ध्यवान् की पुत्री तथा पुष्करमाली की वधू हूँ | शुम्भ द्वारा अपने पति की मृत्यु हो जाने के बाद से मैं तीर्थाटन करती हूँ। मुझे ज्ञात हुआ है कि किसी मनुष्य ने शूकर का रूप धारण किये हुये पातालकेतु को अपने ‘बाण से आहत कर दिया है। सुरभि के बचनानुसार उसी मनुष्य के साथ इसका विवाह होना चाहिये | किन्तु अापके रूप-लावण्य के कारण यह आप में अनुरक्त हो गयी है। इसी विषम स्थिति ने इसे मूछित कर दिया है / मैं भी अपनी सखी की इस दुःखावस्था से दुःखित हूँ। मैंने आपको सब बातें बता दीं। अब आप कृपा कर अपना परिचय दें। राजकुमार ने अपना परिचय प्रस्तुत किया और उससे यह स्पष्ट हो गया कि इसी के बाण से शूकरदेहधारी पातालकेतु मारा गया है। अतः सुरभि के कथनानुसार यही मदालसा का पति होगा। फलतः कुण्डला ने राजकुमार के समक्ष मदालसा के विवाह का प्रस्ताव रखा / राजकुमार ने पहले तो पिता की अनुमति प्राप्त किये विना विवाह करना अस्वीकार कर दिया किन्तु बाद में कुण्डला के विशेष आग्रह करने पर विवाह कर लिया। विवाह के पश्चात् कुण्डला ने अवसरोचित निवेदन कर तपस्या करने के हेतु अपनी सखी और राजकुमार से बिदा ली। राजकुमार ने भी अपनी नवपरिणीता वधू मदालसा को साथ ले घर के लिये प्रस्थान किया और वहाँ पहुँच पिता को प्रणाम कर मदालसा को प्राप्त करने की सारी कथा सुनायी। राजा शत्रुजित्