________________ ( 71 ) ने इस समाचार से बड़ी प्रसन्नता का अनुभव किया तथा वर-वधू को आशीर्वाद प्रदान किया। इस अध्याय के निम्न श्लोक संग्राह्य हैं भर्तव्या रक्षितव्या च भार्या हि पतिना सदा। .. धर्मार्थकामसंसिद्धथै भार्या भर्तृसहायिनी // यदा भार्या च भर्ता च परस्परवशानुगौ। तदा धर्मार्थकामानां त्रयाणामपि रक्षणम् // 71 // कथं भार्यामृते धर्ममर्थ वा पुरुषः प्रभो ? प्राप्नोति काममथवा तस्यां त्रितयमाहितम् // 72 // तथैव भर्तारमृते भार्या धर्मादिसाधने / न समर्था त्रिवर्गोऽयं दाम्पत्यं समुपाश्रितः // 73 // देवतापितृभृत्यानामतिथीनां च पूजनम् / न पुग्भिः शक्यते कर्तुमृते भायों नृपात्मज ! // 74 // प्राप्नोति' चार्थो मनुजैरानीतोऽपि निजं गृहम् / क्षयमेति विना भार्यो कुभार्यासंश्रयेऽपि च // 75 / / कामस्तु तस्य नैवास्ति प्रत्यक्षेणोपलक्ष्यते / दम्पत्योः सह धर्मेण त्रयीधर्ममवाप्नुयात् // 76 // पितृन् पुत्रैस्तथैवान्नसाधनैरतिथीन् नृपः। पूजाभिरमरांस्तद्वत्साध्वीं भाया नरोऽवति // 77 // स्त्रियाश्चापि विना भत्रो धर्मकामार्थसन्ततिः। . नैव तस्मात् त्रिवर्गोऽयं दाम्पत्यमधिगच्छति / / 78 / / पति को सदैव अपनी भार्या का भरण तथा रक्षण करना चाहिये, क्योंकि धर्म, अर्थ और काम की सिद्धि में भार्या भर्ता की सहायिका होती है // 70 // ___ जब भार्या और भर्ता स्नेहपूर्वक एक दूसरे का अनुवर्तन करते हैं तभी धर्म, अर्थ और काम-इन तीनों की प्राप्ति होती है // 71 // धर्म, अर्थ और काम ये तीनों जब भार्या पर ही निर्भर हैं, तब उसके बिना पुरुष को इन तीनों की प्राप्ति कैसे हो सकती है 1 // 72 / / जिस प्रकार भर्ता के विना भार्या धर्म आदि का साधन करने में असमर्थ है, उसी प्रकार भार्या के विना भर्ता भी उनका साधन करने में असमर्थ है। निश्चय ही यह त्रिवर्ग दाम्पत्य पर ही आश्रित है / / 73 // राजकुमार ? यह निश्चय मानो कि पुरुष भार्या के अभाव में देवता, पितर, भृत्यवर्ग, तथा अतिथियों का पूजन-तृप्तिसम्पादन कथमपि नहीं कर सकता // 74 //