________________ ( 51 ) होता है / सगुण रूप के तीन भेद हैं, (1) तमोगुणप्रधान-यह शेष नाम से प्रसिद्ध है और यह पृथ्वी इसी पर आधारित है। (2) सत्त्वप्रधान-इससे प्रजा का पालन तथा धर्म का संस्थापन होता है / (3) रजःप्रधान-यह जल के मध्य सर्पशय्या पर आश्रित है / इसी से सृष्टि का निर्माण होता है। इन संगुण मूर्तियों में जो सत्त्वप्रधाना प्रजापालिका मूर्ति है वही धर्म की ग्लानि तथा अधर्म का अभ्युत्थान होने पर धर्मविरोधियों के वध और धर्मपालकों की रक्षा के द्वारा अधर्म की निवृत्ति एवं धर्म के संस्थापन के निमित्त शरीर धारण करती है। इसके वराह, नृसिंह, वामन आदि अनेक अवतार हो चुके हैं / इसी ने मथुरा में श्रीकृष्ण के रूप में अवतार ग्रहण किया है। इस अध्याय के ये श्लोक संग्राह्य हैंस्फीतद्रव्ये कुले केचिज्जाताः किल मनस्विनः। द्रव्यनाशे द्विजेन्द्रास्ते शबरेण सुसान्त्विताः // 11 // दत्त्वा याचन्ति पुरुषा हत्वा बध्यन्ति चापरे / पातयित्वा च पात्यन्ते त एव तपसः क्षयात् // 12 / / एतद् दृष्ट सुबहुशो विपरीतं तथा मया / भावाभावसमुच्छेदैरजस्रं व्याकुलं जगत् // 13 // इति सञ्चिन्त्य मनसा न शोकं कर्तुमर्हथ / ज्ञानस्य फलमेतावच्छोकहरैरधृष्यता // 14 // जो लोग सम्पन्न कुल में पैदा होकर बड़े मनस्वी रहे, सम्पत्ति का नाश हो जाने पर उन्हीं को शबरों से सान्त्वना प्राप्त करनी पड़ी // 11 / / जो पहले दाता रहे बाद में उन्हें याचक होना पड़ा। जो दूसरों को मारते थे उन्हें स्वयं दूसरों के हाथ मरना पड़ा / जो दूसरों को गिराते थे उन्हें स्वयं दूसरों द्वारा गिरना पड़ा। ऐसी उलट-फेर की बातें तपस्या के क्षय से अनेक बार होती देखी गई हैं। भाव के बाद श्रभाव और अभाव के बाद भाव। इस प्रकार भावाभाव की परम्परा से संसार के लोग सदैव व्याकुल रहते हैं / / 12, 13 // श्राप लोगों को भी ऐसा विचार कर कभी शोक न करना चाहिये / शोक और हर्ष के वशीभूत न होना ही ज्ञान का फल है // 14 // पांचवा अध्याय इस अध्याय में पक्षियों ने जैमिनि के दूसरे प्रश्न का उत्तर इस प्रकार दिया हैद्रौपदी सामान्य नारी न थी। वह इन्द्र की पत्नी साक्षात् शची थी जो द्रुपद की कन्या होकर अवतीर्ण हुई थी। इसी प्रकार युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम तथा नकुल