________________ से घेर रखा है / चेतन पुरुष ही इस नगर का राजा है // 60 // उसके दो मन्त्री हैं-बुद्धि और मन। वे दोनों एक दूसरे के विरोधी हैं और सर्वदैव अपने वैर का प्रतिशोध करने की ताक में रहते हैं // 61 // उस राजा के चार शत्रु हैं-काम, क्रोध, लोभ तथा मोह / ये चारों उस राजा का नाश करने को सदैव उद्यत रहते हैं // 62 / / जब वह नवों दरवाजों को बन्द किये रहता है तब उसको शक्ति सुरक्षित रहती है और वह निर्भय बना रहता है // 63 / / परन्तु जब वह दरवाजों को खुला छोड़ देता है तब राग नामक शत्रु नेत्र आदि द्वारों पर आक्रमण करता है // 64 / / वह सर्वत्र व्यापक और बड़ा विशाल है। वह पाँचों दरवाजों से प्रवेश करता है / उसके पीछे तीन और भयंकर शत्रु प्रविष्ट हो जाते हैं // 65 / / पाँच इन्द्रिय-द्वारों से प्रविष्ट होकर राग मन तथा अन्यान्य इन्द्रियों से अपना सम्बन्ध स्थापित कर लेता है // 66 // इन्द्रिय और मन को वश में करके वह दुर्जेय हो जाता है तथा समस्त दरवाजों पर अधिकार कर प्रज्ञारूपी चहारदीवारी को नष्ट कर देता है // 67 / / मन को राग के अधीन देखकर बुद्धि भी नष्ट हो जाती है / मन्त्रियों के अभाव में अन्य पुरवासी भी उसे छोड़ देते हैं / / 68 / / फिर शत्रुओं को उसके छिद्र का ज्ञान हो जाने से राजा उनके द्वारा नाश को प्राप्त हो जाता है। राग, मोह, लोभ और क्रोध-ये दुष्ट शत्रु मनुष्य की स्मरणशक्ति का नाश कर देते हैं / राग से क्रोध, क्रोध से लोभ और लोभ से अविवेक का जन्म होता है / / 66, 70 // अविवेक से स्मृति का विभ्रम होता है और स्मृति के विभ्रम से बुद्धि का नाश होता है। फिर बुद्धि का नाश होने से मनुष्य कर्तव्यच्युत हो स्वयं नष्ट हो जाता है // 71 / / नास्त्यसाविह संसारे यो न दिष्टेन बाध्यते / सर्वेषामेव जन्तूनां देवाधीनं हि चेष्टितम् // 1 // इस संसार में ऐसा कोई नहीं है जो दैव से बाधित न हो, और यह इसीलिये कि सभी जन्तुओं की चेष्टा देव के ही अधीन होती है // 1 // चौथा अध्याय परस्पर परिचय होने के पश्चात् जैमिनि ने उन पक्षियों के समक्ष अपने पूर्वोक्त चारों प्रश्न सुनाये और कहा कि इन्हीं प्रश्नों का उत्तर पाने के लिये मैं मार्कण्डेय ऋषि के निर्देश से आप लोगों के निकट अाया हूँ। पक्षियों ने जगत्प्रभु परमात्मा को प्रणाम कर पहले प्रश्न का उत्तर इस प्रकार दिया नीरनिधिनिवासी नारायण के दो रूप हैं-निर्गुण और सगुण / निर्गुण रूप सर्वथा निर्देशातीत तथा योगियों का ध्येय है और वासुदेव नाम से व्यवहृत