________________ ( 46 ) दक्षिणावाले अनेक यज्ञों से अथवा अन्य किसी उत्तम कर्म से नहीं प्राप्त हो सकता // 48 // प्रज्ञाप्राकारसंयुक्तमस्थिस्थूणं पुरं महत् / चर्मभित्तिमहारोधं मांसशोणितलेपनम् / / 56 / / नवद्वारं महायासं सर्वतःस्नायुवेष्टितम् / नृपश्च पुरुषस्तत्र चेतनावानवस्थितः // 60 // मन्त्रिणौ तस्य बुद्धिश्च मनश्चैव विरोधिनौ।। यतेते वैरनाशाय तावुभावितरेतरम् // 6 // नृपस्य तस्य चत्वारो नाशमिच्छन्ति विद्विषः / / कामः क्रोधस्तथा लोभो मोहश्चान्यस्तथा रिपुः // 6 // यदा तु स नृपस्तानि द्वाराण्यावृत्य तिष्ठति | तदा सुस्थबलश्चैव निरातङ्कश्च जायते // 63 // यदा तु सर्वद्वाराणि विवृतानि स मुञ्चति / रागो नाम तदा शत्रुर्नेत्रादिद्वारमृच्छति // 64 // सर्वव्यापी महायामः पञ्चद्वारप्रवेशनः / तस्यानुमार्ग विशति तद्वै घोरं रिपुत्रयम् // 6 // प्रविश्याथ स वै तत्र द्वारैरिन्द्रियसंज्ञकैः / रागः संश्लेषमायाति मनसा च सहेतरैः // 66 / / इन्द्रियाणि मनश्चैव वशे कृत्वा दुरासदः / द्वाराणि च वशे कृत्वा प्राकारं नाशयत्यथ / / 67 // मनस्तस्याश्रितं दृष्ट्वा बुद्धिर्नश्यति तत्क्षणात् / अमात्यरहितस्तत्र पौरवर्गोज्झितस्तथा // 68 / / रिपुभिर्लब्धविवरः स नृपो नाशमृच्छति / एवं रागस्तथा मोहो लोभः क्रोधस्तथैव च / / 6 // प्रवर्तन्ते दुरात्मानो मनुष्यस्मृतिनाशकाः / रागात्क्रोधः प्रभवति क्रोधाल्लोभोऽभिजायते // 70 // लोभाद् भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः।। स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति // 71 // . यह शरीर एक बड़ा सा नगर है / प्रज्ञा इसकी चहारदीवारी है / यह हडिडयों के खम्भे पर खड़ा है / चमड़ा इसकी दीवार है जिसने समूचे नगर को रोक रखा है / मांस और रक्त के पङ्क का इस पर लेप चढ़ा है // 56 // इसमें नव दरवाजे हैं / यह बड़े यत्न से सुरक्षित है। नसों और नाड़ियों ने इसे सब ओर 4 मा० पु०