________________ ( 48 ) तीसरा अध्याय इस अध्याय में पक्षियों ने शमीक ऋषि को अपनी जन्मकथा सुनाई है जो इस प्रकार है विपुलस्वान् के ज्येष्ठ पुत्र सुकृष सत्यनिष्ठ, तपस्वी तथा सम्पन्न ब्राह्मण थे। ये पक्षी पूर्व जन्म में इन्हीं के पुत्र थे / एकबार सुकृष की तपस्या की परीक्षा के लिये इन्द्र एक वृद्ध, बुभुक्षित पक्षी के रूप में उनके पास गये / सुकृष ने उस पक्षी का श्रातिथ्य करने की इच्छा से उसके अाहार के सम्बन्ध में जिज्ञासा की। पक्षी ने मनुष्य के मांस और रक्त को अपना खाद्य तथा पेय बताया। ब्राह्मण ने अतिथिसत्कार को गृहस्थ का श्रेष्ठ धर्म समझ कर अपने पुत्रों से पहले आज्ञापालन का वचन लिया और बाद में अपने रक्त-मांस से उस पक्षी का श्रातिथ्य करने की अाज्ञा दी। पुत्र जीवन के मोह में पड़ कर पिता की आशा मानने को तैयार न हुये / तब पिता ने रुष्ट होकर उन्हें पक्षी हो जाने का शाप दे दिया / पुत्रों ने त्रस्त हो पिता से क्षमा माँगी / पिता ने शाप को अपरिवर्तनीय बताते हुए वरदान दिया कि पक्षी की योनि में भी उनकी स्मृति का लोप न होगा और उनकी विद्यायें ज्यों की त्यों बनी रहेंगी। इसी शाप और वरदान के अनुसार ये मुनिकुमार सर्वशास्त्रसम्पन्न पक्षी हुये। इस अध्याय के ये श्लोक संग्रह करने योग्य हैं यस्मिन्नराणां सर्वेषामशेषेच्छा निवर्तते / स कस्माद् वृद्धभावेऽपि सुनृशंसात्मको भवान् ? // 2 // क मानुषस्य पिशितं? क वयश्वरमन्तव ? / सर्वथा दुष्टभावानां प्रशमो नोपजायते // 30 // जिस अवस्था में सब जीवों की सारी इच्छायें समाप्त हो जाती हैं, उस वृद्धावस्था में पहुँच कर भी आप इतने नृशंस क्यों हैं ? // 26 // कहाँ मनुष्य का मांस और कहाँ यह आपकी अन्तिम अवस्था ? सत्य है, दुष्टभावों की शान्ति कदापि नहीं होती // 30 // एतावदेव विप्रस्य ब्राह्मणत्वं प्रचक्ष्यते / यावत्पतङ्गजात्यग्रे स्वसत्यपरिपालनम् // 47 // न यज्ञैर्दक्षिणावद्भिस्तत्पुण्यं प्राप्यते महत् / कर्मणाऽन्येन वा विप्रैर्यत्सत्यपरिपालनात् // 4 // ब्राह्मण का ब्राह्मणत्व इसी में है कि वह पक्षी के समक्ष भी सत्य का पालन करे // 47 // ब्राह्मण को सत्यपालन से जो महान् पुण्य प्राप्त होता है वह अच्छी