________________ ( 52 ) और सहदेव-ये पांचों पाण्डव भी सामान्य मनुष्य नहीं थे, किन्तु ये पांच रूपों में अवतीर्ण साक्षात् इन्द्र देव थे। जिस प्रकार योगी अपने योगप्रभाव से एक ही समय अनेक शरीर धारण कर लेता है उसी प्रकार योगशक्तिसम्पन्न देवराज ने भी ये पांच शरीर धारण कर लिये थे। इस प्रकार द्रौपदी पांच शरीरों में स्थित एक ही पुरुष की पत्नी थी। इस अध्याय से यह शिक्षा मिलती है कि ब्राह्मणवध, सन्धिभङ्ग तथा परस्त्रीगमन जैसे दुष्कर्मों से महान् से महान् पुरुष का भी घोरतम पतन हो जाता है, जैसा कि प्रजापति त्वष्टा के पुत्र के वध से, सन्धिभङ्ग कर वृत्र का वध करने से तथा गौतम ऋषि की पत्नी अहल्या का सतीत्व नष्ट करने से देवराज इन्द्र का हुआ। छठा अध्याय इस अध्याय में जैमिनि के तीसरे प्रश्न का उत्तर इस प्रकार दिया गया है__ जब कौरव और पाण्डवों के बीच होने वाले महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण ने अर्जुन का सारथि होना स्वीकार कर लिया तो श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता बलराम बड़े असमञ्जस में पड़े। उन्होंने सोचा कि दुर्योधन का पक्ष लेने पर अपने अनुज श्रीकृष्ण से विरोध करना होगा और श्रीकृष्ण के कारण पाण्डवों का पक्ष लेने पर अपने स्नेही तथा सम्बन्धी दुर्योधन से वैर करना होगा / अतः उन्होंने निश्चय किया कि वे किसी भी पक्ष से युद्ध में सम्मिलित न होंगे और जब तक युद्ध समाप्त न हो जायगा तब तक तीर्थाटन करेंगे। इस निश्चय के अनुसार उन्होंने अपनी पत्नी रेवती तथा थोड़े से परिजनों को साथ लेकर तीर्थयात्रा के लिये प्रस्थान कर दिया / एक दिन उन्होंने कुछ अधिक मद्यपान कर परिजनों सहित रैवत वन में प्रवेश किया। वहाँ सूतजी ऋषिमण्डली के बीच कथा कह रहे थे। श्रोता ऋषियों ने खड़े होकर बलराम जी का स्वागत किया, पर सूत जी व्यासासन की मर्यादा का विचार कर बैठे ही रह गये। इससे ऋद्ध हो बलराम ने उनका वध कर दिया / इस घटना से खिन्न हो ऋषिगण उस वन को छोड़ अन्यत्र चले गये। थोड़े समय बाद जब बलराम के शिर से सुरा का प्रभाव उतरा तो उन्हें अपने कुकृत्य पर बड़ा पश्चात्ताप हुआ / इस प्रकार सूत जी के वध से लगी ब्रह्महत्या का प्रायश्चित्त करने के लिये अपने कुकृत्य का उद्घोष करते हुये उन्होंने पुनः नये सिरे से तीर्थयात्रा प्रारम्भ की। इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि मादक द्रव्य के सेवन से बलराम जैसे धीर और विवेकी पुरुष भी पथभ्रष्ट हो जाते हैं अतः मादक द्रव्य का सेवन सर्वथा त्याज्य है।