SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 37 ) को चिन्ता हुई कि यह तेजः पुज यदि इसी प्रकार अनवरत तपता रहेगा तो उसके सामने उनकी बनायी सृष्टि एक क्षण भी न टिक सकेगी। सारे जीव ताप के मारे निष्प्राण हो जायेंगे। सारा जल सूख जायगा / फिर जल के विना जगत् का जन्म एवं जीवन कैसे हो सकेगा ? यह सोच कर लोक-पितामह ब्रह्मा जी ने अत्यन्त तन्मय हो भगवान् सूर्य की स्तुति की / वह स्तुति सूर्यदेव के कतिपय तथ्यों पर प्रकाश डालती है। उसमें समस्त जगत को सूर्यमय तथा सूर्यको सर्वजगन्मय कहा गया गया है। विश्व को उनकी मूर्ति बताया गया है / योगी जन योगाभ्यास-द्वारा जिस ज्योति का दर्शन पाने की अहर्निश चेष्टा करते हैं, उस परम ज्योति के रूप में उसका वर्णन किया गया है / उन्हीं को पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश के रूप से समस्त भौतिक जगत का उत्पादक कहा गया है। उन्हें उस आद्या शक्ति का आश्रय बताया गया है, जिसकी प्रेरणा से ही जगत के निर्माण का उपक्रम होता है / उन्हें समस्त यज्ञों द्वारा परमास्मज्ञ पुरुषों का यजनीय, समस्तयज्ञमय विष्णु का स्वरूप, यति जनों की सम्पूर्ण बुद्धिवृत्तियों का मुख्य पालम्बन, मुमुक्षुजनों का सर्वेश्वर परतत्त्व बताते हुये देव, यज्ञ तथा योगियों की साधना के विषयभूत परब्रह्म के रूप में नमस्कार किया गया है। यज्ञैर्यजन्ति परमात्मविदो भवन्तं विष्णुस्वरूपमखिलेष्टिमयं विवस्वान् ! ध्यायन्ति चापि यतयो नियतात्मचित्ताः सर्वेश्वरं परममात्मविमुक्तिकामाः॥ नमस्ते देवरूपाय यज्ञरूपाय ते नमः / परब्रह्मस्वरूपाय चिन्त्यमानाय योगिभिः॥ दिति एवं दनु के पुत्र दैत्य और दानवों द्वारा अपने पुत्रों देवताओं का पराजय हो जाने पर कश्यप की पत्नी दक्षपुत्री अदिति ने भी अपने पुत्रों को विजय दिलाने के निमित्त सूर्य देव की स्तुति की थी। उस स्तुति से भी सूर्य के सम्बन्ध में बहुत सी बातों की जानकारी होती है / उसमें सूर्य को परम सूक्ष्म सुवर्णमय शरीर का धारक तथा सब प्रकार के तेजों का शाश्वत केन्द्र कहा गया है / किरणों द्वारा पृथ्वी के जल तथा सोमरस का आकर्षण कर जगत् के उपकारार्थ जल-वृष्टि करने वाले मेघ के रूप में उनका वर्णन किया गया है / उन्हें समस्त ओषधियों का पकाने वाला, हिम पिघला कर अनेक प्रकार के सस्यों का सम्पादन करने वाला, वसन्त श्रादि ऋतुत्रों में श्री एवं सौन्दर्य का प्राधान करने वाला, सभी चेतन-अचेतन प्राणियों को जीवनामृत देने वाला, देव एवं पितरों
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy