________________ ( 38 ) को तृप्तिदान करने वाला बताया गया है / जगत के अग्निमय एवं सोममय रूप को निष्पन्न करने वाले अर्क तथा चन्द्र शब्द से व्यवहृत तीव्र और सौम्य दो विरोधी रूपों के समन्वय का अाधारस्थल भी उन्हें कहा गया है / अन्त में 'श्रोम' शब्द का वाच्य सूक्ष्म, अनन्त एवं निर्मल सद्रूप बताकर नमस्कार किया गया है। यत्तु तस्मात्परं रूपमोमित्युक्त्वाऽभिशब्दितम् / अस्थूलानन्तममलं नमस्तस्मै सदात्मने // सूर्यदेव को प्रसन्न करने के निमित्त उनकी स्तुति करते हुये निराहार रह कर अदिति ने चिर काल तक कठिन तपस्या की। फिर प्रसन्न हो सूर्य देव ने अदिति को प्रत्यक्ष दर्शन दिया / अदिति ने देखा कि आकाश से पृथ्वी तक तेज का एक महान् पुञ्ज स्थित है। उससे अनन्त उद्दीप्त उग्र ज्वालायें फूट फूट कर चारो ओर फैल रही हैं। जिसके कारण उस तेज की ओर देखना दुष्कर हो रहा है / यह देख अदिति को बड़ा भय हुा / वे बोलीं-, ____ गोपते ! आप मुझ पर प्रसन्न हों / मैं पहले जिस प्रकार आप को देखती थी उस प्रकार अाज नहीं देख पा रही हूँ। इस समय पृथ्वी पर तेज का एक अत्यन्त विशाल समुदाय दिखाई पड़ रहा है / दिवाकर ! मुझ पर कृपा कीजिये, जिससे मैं आपका दर्शन कर सकें / प्रभो ! आप भक्त-वत्सल हैं। मुझ भक्त पर अनुग्रह कर मेरे पुत्रों की रक्षा कीजिये / आप ही ब्रह्मा बन इस विश्व की सृष्टि करते हैं / आप ही विष्णुरूप से इसकी रक्षा करते हैं और अन्त में यह सारा जगत श्राप के ही रुद्ररूप में प्रलीन होता है / सम्पूर्ण लोक में आपको छोड़ दूसरी कोई गति नहीं है। आप ही ब्रह्मा, विष्णु, शिव, इन्द्र, कुबेर, यम, वरुण, वायु, चन्द्रमा, अग्नि, आकाश, पर्वत और समुद्र हैं / आपका तेज सब की आत्मा है / यज्ञपते ! अपने कर्मों में लगे ब्राह्मण प्रतिदिन आपका स्तवन एवं यजन करते हैं। अपने चित्त को अपने वश में रखने वाले योगी जन योगाम्यास-द्वारा निरन्तर अाप का ही ध्यान करते हुये परम पद को प्राप्त करते हैं / आप ही विश्व को ताप देते, उसे पकाते, उसकी रक्षा करते और उसे भस्म करते हैं / आप ही अपनी गर्म किरणों द्वारा उसे प्रकट करते और आनन्द देते हैं / कमलयोनि ब्रह्मा के रूप में श्राप ही सृष्टि करते हैं / अच्युत नाम से श्राप ही पालन करते हैं और कल्पान्त में रुद्र बन श्राप ही सम्पूर्ण जगत का संहार करते हैं / तपसि पचसि विश्वं पासि भस्मीकरोषि प्रकटयसि मयूखैादयस्यम्बुगर्भः / सृजसि कमलजन्मा पालयस्यच्युताख्यः क्षपयसि च युगान्ते रुद्ररूपस्त्वमेव //