________________ ( 15 ) देवानामपि विप्रर्षे! सदैवैष मनोरथः / अपि मानुष्यमाप्स्यामो देवत्वात्प्रच्युताः क्षितौ // __ (मा० पु० 55-57 अ०) मानव-सभ्यता पुराण के अध्ययन से ज्ञात होता है कि मानवजाति तथा मानव सभ्यता का उदगम और विकास सर्वप्रथम इस भारतवर्ष में ही हुआ, क्योंकि मनु ही इस जाति और इस सभ्यता के आद्य उद्भावक हैं और उनके जन्म एवं जीवन का क्षेत्र यही देश है। उनके वंशजों का फैलाव पृथ्वी के अन्य देशों में यहाँ से ही हुआ था। हमारी इस धारणा का अाधार यह है कि मनु की वंश-परम्परा का ज्येष्ठ पुत्र सदा इसी देश के राज्यासन पर अभिषिक्त होता रहा और यह सर्वमान्य प्रथा है कि पिता ज्येष्ठ पुत्र को ही अपने प्रधान स्थान का अधिकारी बनाता है अत: यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि इस देश पर पाश्चात्यों का शासन होने के बाद से कतिपय ऐतिहासिकों ने जो यह मत व्यक्त किया है कि इस देश में सभ्य मानवों का आगमन बाहर से हुया है वह नितान्त असत्य है। - यह पहले कहा जा चुका है कि प्रति मन्वन्तर में देवगण, इन्द्र, सप्तर्षि और राजवंश भिन्न-भिन्न होते हैं / उसके अनुसार स्वायम्भुव मनु के पुत्र प्रियव्रत का वंश ही इस मन्वन्तर का राजवंश है / इस पूरे मन्वन्तर में उस वंश के लोगों का ही सारी पृथ्वी पर शासन था / यह बात अगले श्लोक में व्यक्त है एतेषां पुत्रपौत्रैस्तु सप्तद्वीपा वसुन्धरा / - प्रियव्रतस्य पुत्रैस्तु भुक्ता स्वायम्भुवेऽन्तरे॥ (मा० पु० 53 अ०) ऊर्जा नामक पत्नी से वशिष्ठ के सात पुत्र पैदा हुये थे-रज, गात्र, ऊर्ध्वबाहु, सबल, अनघ, सुतपा और शुक्र / ये ही इस मन्वन्तर के सप्तर्षि हैं ऊर्जायां तु वशिष्ठस्य सप्ताजायन्त वै सुताः। रजोगात्रोव॑बाहुश्च सबलश्चानघस्तथा // सुतपाः शुक्र इत्येते सर्वे सप्तर्षयः स्मृताः॥ (मा० पु० 52 अ०) यज्ञ की पत्नी दक्षिणा से बारह पुत्र पैदा हुये थे जो यामा नाम से प्रसिद्ध थे / ये ही इस मन्वन्तर के देवगण हैं यज्ञस्य दक्षिणायास्तु पुत्रा द्वादश जज्ञिरे | यामा इति समाख्याता देवाः स्वायम्भुवेऽन्तरे॥ (मा० पु० 50 अ०)