________________ इन देवतात्रों के पिता यज्ञ और माता दक्षिणा दोनों प्रजापति की सहोत्पन्न सन्तति हैं तथा इनका दाम्पत्य भी सहज है। 2. स्वारोचिष वरुणा नदी के तट पर अरुणास्पद नामक स्थान में एक ब्राह्मण रहता था। वह बड़ा विद्वान्, सदाचारी तथा अत्यन्त सुन्दर था / एक दिन उसके यहाँ आये हुये एक अतिथि ने उसे एक लेप दिया / उस लेप को पैर में लगा कर इच्छानुसार पृथ्वी के किसी भी भाग में बड़ी शीघ्रता से अनायास जाया जा सकता था / इस लेप को पा ब्राह्मण ने देशाटन की अपनी चिरन्तन इच्छा पूर्ण करने का निश्चय किया / लेप का प्रयोग कर सर्वप्रथम वह हिमालय पर्वत पर गया। पर्वत के अनेक रमणीय स्थानों के देखने में तल्लीन हो जाने से उसे लेप को सुरक्षित रखने का ध्यान न रहा / फलतः झरनों की जलधारा से पैर का लेप धुल गया / जब उसे घर लौटने की सुधि हुई तो अपने को असमर्थ पा उसे बड़ी चिन्ता हुई। इसी बीच बरूथिनी नाम की एक परम-सुन्दरी अप्सरा भाई और ब्राह्मण के अप्रतिम सौन्दर्य से मुग्ध हो उससे प्रणय-याचना करने लगी। ब्राह्मण बड़ा धार्मिक एवं सदवृत्त था / उसने अप्सरा की मांग ठुकरा दी और घर लौटने की शक्ति प्राप्त करने के निमित्त अग्निदेव की विनती की। उसकी विनती तथा दृढ़ धर्मनिष्ठा के कारण गार्हपत्य अग्नि ने उसके शरीर में बलाधान कर दिया और वह अपने घर चला गया। इधर बरूथिनी उसकी उपेक्षा से अत्यन्त व्यथित हो गई और अातुर हो उसे प्राप्त करने का उपाय करने लगी। कलि नाम का गन्धर्व, जिसकी प्रणय-प्रार्थना को इस अप्सरा ने एक बार अस्वीकार कर दिया था, इस अवसर का लाभ उठाने को उद्यत हुआ। अप्सरा जिस ब्राह्मण के लिये विहल थी उसी के रूप में वह गन्धर्व उसके समक्ष उपस्थित हुअा। वरूथिनी उसे देख प्रसन्न हो उठी और उसने बड़े कातर भाव से पुनः प्रणय की याचना की। इस बार उसकी प्रार्थना स्वीकृत हो गई और फलस्वरूप उसे गर्भाधान हो गया। थोड़े दिन बाद उससे एक बड़ा तेजस्वी पुत्र पैदा हुअा जिसका नाम स्वरोचिष पड़ा। युवा होने पर मनोरमा, विभावरी और कलावती नाम की अपनी पत्नियों से उसने विजय, मेरुनाद और प्रभाव नाम के तीन पुत्र पैदा किये / पुत्रों के बड़े होने पर राजा ने देश को पूर्व, उत्तर और दक्षिण इन तीन भागों में विभक्त कर विजय को पूर्व का, मेरुनाद को उत्तर का तथा प्रभाव को दक्षिण का राजा बना दिया और स्वयं राजकार्य से मुक्त हो अानन्द से रहने लगा। एक दिन वह वन विहार के लिये जंगल गया / सामने एक वाराह दिखाई पड़ा। उसे मारने को ज्यों ही उसने बाण ताना त्यों ही सामने आ हरिणी ने कहा 'राजन् ! इस बाण को वाराह पर मत डालिये, किन्तु इससे