________________ हिमा दक्षिणं वर्ष भरताय पिता ददो : तस्मात्तु भारतं वर्ष तस्य नाम्ना महात्मनः / / (मा० पु० 54 अ०) भारतवर्ष भारतवर्ष के दो भेद हैं-एक बृहत्तर भारत और दूसरा भारत या लघुभारत / बृहत्तर भारत के नव भाग हैं और वे एक दूसरे से समुद्र द्वारा व्यवहित एवं विभक्त हैं, अतः एक भाग से दूसरे भाग में स्थल मार्ग से जाना असम्भव है भारतस्यास्य वर्षस्य नव भेदान्निबोध मे | समुद्रान्तरिता ज्ञेयास्ते त्वगम्याः परस्परम् // (मा० पु० 57 अ०) बृहत्तर भारत के नव भागों में जो भाग हिमालय के दक्षिण में स्थित है वह पृथ्वी का सर्वश्रेष्ठ देश है। इसके तीन अोर-पूर्व, पश्चिम तथा दक्षिण मेंसमुद्र और उत्तर में हिमालय पर्वत स्थित है। इसके पूरे चित्र को ध्यान में रखने पर ऐसा ज्ञात होता है कि पूर्व के पूरे भाग से दक्षिण होते हुये पश्चिम के पूरे भाग तक फैला हुअा महासमुद्र एक धनुष है और उत्तर में खड़ा हिमालय उसकी डोर है तथा बीच का स्थल भाग ( भारतवर्ष ) धनुष और डोर के बीच का रिक्त स्थान है एतत्तु भारतं वर्ष चतुःसंस्थानसंस्थितम् / दक्षिणापरतो ह्यस्य पूर्वेण च महोदधिः॥ हिमवानुत्तरेणास्य कार्मुकस्य यथा गुणः / तदेतद्भारतं वर्ष सर्वबीजं द्विजोत्तम ! // (मा० पु० 57 अ०) हिमालय के दक्षिण में स्थित भारतवर्ष ही कर्म की भूमि है / पुण्य और पाप की व्यवस्था भी यहीं है, अन्यत्र नहीं / यहीं से मनुष्य स्वर्ग, मोक्ष, मनुष्ययोनि, नरकयोनि, पशु आदि की योनि अथवा अन्य योनि प्राप्त कर सकता है। इसी कारण देवताओं का सदा यही मनोरथ रहता है कि वे देवत्व से छूटकर भारतवर्ष में मनुष्य योनि में उत्पन्न हों भारतं नाम यद्वर्ष दक्षिणेन मयोदितम् / तत्कर्मभूमिर्नान्यत्र सम्प्राप्तिः पुण्यपापयोः॥ तस्मात् स्वर्गापवर्गों च मानुष्यनारकावपि / तिर्यक्त्वमथवाप्यन्यन्नरः प्राप्नोति वै द्विज ! //