________________ ( 13 ) स्वायम्भुवो मनुः पूर्व मनुः स्वारोचिषस्तथा / औत्तमस्तामसश्चैव रैवतश्चाक्षुषस्तथा / / सावर्णिः पञ्च रौच्याश्च भौत्याश्चागामिनस्त्वमी। __ (मा० पु० 53 अ०) 1. स्वायम्भुव परब्रह्म परमेश्वर के नाभिकमल से उत्पन्न ब्रह्मा ने उत्तम सृष्टि के विस्तार की इच्छा से अपने शरीर के एक भाग से एक पुरुष और दूसरे भाग से एक स्त्री उत्पन्न की, जो स्वायम्भुव मनु और शतरूपा नाम से प्रसिद्ध हुये / इन दोनों के योग से प्रियव्रत और उत्तानपाद नाम के दो पुत्र पैदा हुये। उत्तानपाद को उनकी सुनीति और सुरुचि नाम की पत्नियों से ध्रुव और उत्तम नाम के दो पुत्र हुये / प्रियव्रत का विवाह प्रजापति कर्दम की पुत्री प्रजावती से हुआ। उनके भव्य, सवन, मेधा, अग्निबाहु और मित्र / इनमें मेधा, अग्निबाहु और मित्र संसार से विरक्त हो तपस्वी हो गये / प्रियव्रत बड़े प्रतापी थे / सारी पृथ्वी उनके वश में थी। अपने पुत्रों के निमित्त उन्होंने पृथ्वी को द्वीप नाम के सात खण्डों में बाँट दिया / प्लक्ष द्वीप में मेधातिथि को, शाल्मलि द्वीप में वपुष्मान् को, कुशद्वीप में ज्योतिष्मान् को, क्रौञ्चद्वीप में द्युतिमान् को, शाकद्वीप में भव्य को, पुष्कर द्वीप में सवन को तथा जम्बूद्वीप में ज्येष्ठ पुत्र अग्नीध्र को राज्यासन पर अभिषिक्त किया / अग्नीध्र के नव पुत्र हुये-नाभि, किग्पुरुष, हरिवर्ष, इलावृत, रम्य, हिरण्य; कुरु, भद्राश्व और केतुमाल / इन नवों के लिये अग्नीध्र ने जम्बद्वीप को नव भागों में विभक्त कर एक एक पुत्र को एक एक खण्ड का राजा बना दिया। जिस खण्ड का जो राजा हुअा वह खण्ड उसके नाम से प्रसिद्ध हुअा। जो भाग हिमालय से लेकर दक्षिण; पूर्व तथा पश्चिम के समुद्रों तक फैला था उस पर अग्नीध्र के ज्येष्ठ पुत्र नाभि का राज्य हुआ और उन्हीं के नाम से वह अजनाभ कहलाया / हिमालय से प्रारम्भ होने के कारण उसका एक नाम हिम भी था / नाभि के पुत्र ऋषभ हुये और ऋषभ से भरत की उत्पत्ति हुई / ऋषभ ने भरत को राज्य देकर स्वयं संन्यास ले लिया / भरत बड़े वीर, तजस्वी, प्रभावशाली और धार्मिक पुरुष थे। उनके महान् प्रभाव एवं परमोत्तम शासन के कारण ही उनके नाम के आधार पर इस देश की प्रसिद्धि भारतवर्ष के नाम से हुई / यह बात अगले श्लोक में स्पष्ट है अग्नीध्रसूनो भेस्तु ऋषभोऽभूत्सुतो द्विज ! ऋषभाद् भरतो जज्ञे वीरः पुत्रशताद्वरः / /