________________ ( 12 ) उत्पन्नः स जगद्योनिरगुणोऽपि रजोगुणम् / युञ्जन्प्रवतते सर्गे ब्रह्मत्वं समुपाश्रितः॥ (मा० पु० 46 अ०) वंश - वंश शब्द से वे राजवंश विवक्षित हैं जो भिन्न-भिन्न मनुओं द्वारा प्रतिष्ठित हो पृथ्वी का शासन करते हैं, जिनके चरित्र और विधान से तत्तत् समय में प्रजावर्ग की गतिविधि परिचालित होती है / राजवंशों का वर्णन पुराण में बड़े विस्तार से मिलता है। मार्कण्डेय पुराण में भी 101 वें अध्याय से वंशों तथा उनके चरित्रों का वर्णन किया गया है। वंशों का परिचय मन्वन्तर एवं वंशानुचरित की चर्चा के प्रसङ्गों में प्राप्त होगा। मन्वन्तर जो समस्त पृथ्वी पर अपना अधिकार स्थापित कर अपने विधान से सारी पृथ्वी का शासन करता है वह मनु कहा जाता है और उसका विधान तथा उसकी वंश-परम्परा का शासन जितने काल तक चलता है वह मन्वन्तर कहा जाता है / यह काल कुछ अधिक एकहत्तर चतुर्युगी के बराबर होता है / एक मन्वन्तर की अवधि मनुष्य वर्ष के मान से तीस करोड़, सड़सठ लाख, बीस सहन वर्षों की होती है, जैसा कि अगले श्लोकों से ज्ञात होता है मन्वन्तराणां संख्याता साधिका ह्येकसप्ततिः / मानुषेण प्रमाणेन शृणु मन्वन्तरं च मे // त्रिंशत्कोटयस्तु संख्याताः सहस्राणि च विंशतिः। सप्तषष्टिस्तथान्यानि नियुतानि च संख्यया // (मा० पु० 53 अ० ) इस मान के चौदह मन्वन्तर ब्रह्मा के एक दिन में व्यतीत होते हैं / ब्रह्मणो दिवसे ब्रह्मन् मनवः स्युश्चतुर्दश / (मा० पु० 46 अ०) ___प्रति मन्वन्तर में देवता, सनर्षि, इन्द्र, मनु और उनके राजवंश बदल जाते हैं देवाः सप्तर्षयः सेन्द्रा मनुस्तत्सूनवो नृपाः / मनुना सह सृज्यन्ते संह्रियन्ते च पूर्ववत् // (मा० पु. 46 अ०) चौदों मन्वन्तर ये हैं____ स्वायम्भुव, स्वारोचिष, श्रौत्तम, तामस, रैवत, चाक्षुष, वैवस्वत, सावर्णि, दक्षसावर्णि, धीमान-ब्रह्मसावर्णि, धर्मसावर्णि, रुद्रसावर्णि, रौच्य और भौत्य