________________ पाराशर व्यासदेव का ब्रह्मसूत्र भी इसी का निर्देश करता है“जन्माद्यस्य यतः" (ब्र० सू० 1 0 1 पा० 2 सू० ) इस सूत्र की व्याख्या करते हुये श्रीशङ्कराचार्य ने कहा है "अस्य जगतो नामरूपाभ्यां व्याकृतस्य अनेककर्तृभोक्तसंयुक्तस्य प्रतिनियतदेशकालनिमित्तक्रियाफलाश्रयस्य मनसाऽप्यचिन्त्यरचनारूपस्य जन्मस्थितिभङ्गं यतः सर्वज्ञात्सर्वशक्तेः कारणाद्भवति तद् ब्रह्म' ___ यह जगत् जो विभिन्न नाम और रूपों द्वारा विस्पष्टरूप से विभाजित है, जो अनेक कर्ती एवं भोक्ता जीवों से भरा है, जिसमें देश, काल, निमित्त, क्रिया और फल की नियत व्यवस्था है, जिसकी रचना के प्रकार का चिन्तन भी कर सकना सम्भव नहीं है उसकी रचना, उसका पालन और उसका प्रलय जिस सर्वज्ञ सर्वशक्ति कारण से होता है वह ब्रह्म है। इस प्रकार उसके कार्य ही एकमात्र उसके परिचय के उपाय हैं, अतः पुराण भी परब्रह्म परमेश्वर के प्रतिपादन का उपक्रम करता हुआ सृष्टि, प्रलय, आदि उसके कार्यों का ही विवरण प्रस्तुत करता है / कहने का तात्पर्य यह कि सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर और वंशानुचरित के वर्णनों द्वारा पुराण इन सब असाधारण समारम्भों के शाश्वत सूत्रधार पुराणपुरुष परमात्मा का ही प्रतिपादन करता है / मार्कण्डेय पुराण पक्षियों द्वारा व्यास-शिष्य जैमिनि के प्रति मार्कण्डेय ऋषि की उस विद्या का वर्णन है जिसे उन्होंने पितामह ब्रह्मा जी से प्राप्त किया था। इस पुराण में वर्णित कथाओं के मूल वक्ता मार्कण्डेय ऋषि हैं / इस प्रकार यह पुराण मार्कण्डेयमूलक है और इसीलिये इसका नाम मार्कण्डेय पुराण है / मार्कण्डेय ऋषि ये कुमारसर्ग-रुद्रसर्ग के जीव हैं / भृगु के पौत्र मृकण्डु की पत्नी मनस्विनी से इनका जन्म हुअा था। प्रारम्भ में इनकी अायु बहुत अल्प थी पर श्रीमहादेव जी की आराधना कर इन्होंने अपनी आयु की अवधि बढ़ा ली। फिर तो ये सप्तकल्पान्तजीवी हो गये। इनकी प्रज्ञा का विकास उस स्तर तक हुआ था जिसमें मानव के समस्त संशय मिट जाते हैं, मोह का पर्दा हट जाता है, भूत, भविष्यत् और वर्तमान तीनों काल के विषय हस्तामलकवत् प्रत्यक्ष हो जाते हैं तथा जब मृत्युजय-परमार्थज्ञानरूप महादेव के अनुग्रह से चित्-अचित् की अनादि ग्रन्थि का भेदन हो जीवभाव की समग्र अशक्तियाँ समाप्त हो जाती