________________ हैं / अर्थात् जब जीव पूर्णप्रज्ञ एवं पूर्ण जीवन्मुक्त हो परा शक्ति और पर पुरुष के निरूपण की नैपुणी प्राप्त कर लेता है। प्रज्ञा के इस उच्चस्तरीय विकास के कारण ही इनका यह पुराण संक्षिप्त होते हुये भी पूर्ण और अतीव विशद है। मार्कण्डेय पुराण की महिमा मार्कण्डेय पुराण का प्रारम्भ चार प्रश्नों से हुआ है जिन्हें आगे कहा जायगा / इस पुराण के श्रवण से सैकड़ों करोड़ कल्पों के पाप नष्ट हो जाते हैं, ब्रह्महत्या अादि पाप तथा अन्य भी अशुभ कर्म इसके श्रवण से ठीक उसी प्रकार नष्ट हो जाते हैं जैसे वायु के लगने से रई, इसके श्रवण से पुष्करतीर्थ में स्नान करने का पुण्य होता है। वन्ध्या अथवा जिसके बच्चे मर जाया करते हों ऐसी स्त्री यदि ठीक तौर से इस पुराण को सुनती है तो वह निश्चय ही सब शुभ लक्षणों से युक्त पुत्र प्राप्त करती है, धन-धान्य तथा अक्षय स्वर्गलोक प्राप्त करती है। मद्यप और उग्रकर्मा मनुष्य इस पूरे पुराण को सुनकर समस्त पापों से मुक्त हो स्वर्गलोक में पूजित होता है। इस पुराण का श्रवण करनेवाला मनुष्य अायु, आरोग्य, ऐश्वर्य, धन, धान्य, पुत्र एवं वंश प्राप्त करता है / यही बात अगले श्लोकों में वर्णित है चतुःप्रश्नसमोपेतं पुराणं मार्कण्ड्संज्ञकम् / श्रुतेन नश्यते पापं कल्पकोटिशतैः कृतम् // ब्रह्महत्यादिपापानि तथान्यान्यशुभानि च / तानि सर्वाणि नश्यन्ति तूलं वाताहतं यथा // पुष्करस्नानजं पुण्यं श्रवणादस्य जायते / वन्ध्या वा मृतवत्सा वा शृणोति यदि तत्त्वतः॥ साऽपि वै लभते पुत्रं सर्वलक्षणसंयुतम् / धनधान्यमवाप्नोति स्वर्गलोकं तथाऽक्षयम् // सुरापश्चोग्रकर्मा च श्रुत्वैतत्सकलं नरः / सर्वपापविनिर्मुक्तः स्वर्गलोके महीयते // आयुरारोग्यमैश्वर्य धनधान्यसुतादिकम् / वंशं चैव व्यवच्छेदी प्राप्नोति द्विजसत्तम ! // (मा० पु० 137 अ०) उपक्रम व्यास के शिष्य जैमिनि ने मार्कण्डेय जी से चार प्रश्नों के उत्तर पूछे थे / उन्हीं प्रश्नों से इस पुराण का प्रारम्भ हुअा है। वे प्रश्न इस प्रकार हैं