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________________ ( 122 ) ब्रह्माजी ने चिरकाल तक सूर्य की स्तुति की जिससे प्रसन्न हो सूर्यदेव ने अपना तेज समेट लिया। और तब ब्रह्माजी के लिये इस सृष्टि का उत्पादन सम्भव हुआ। ये अध्याय बड़े उत्तम हैं इनके अध्ययन से सृष्टि-प्रारम्भ के समय की अनेक ज्ञातव्य बातों पर प्रकाश पड़ता है। - एक सौ चौथा अध्याय इस अध्याय में बताया गया है कि ब्रह्माजी के मरीचि नामक पुत्र के पुत्र कश्यप दक्षप्रजापति की तेरह कन्याओं के पति हुये। उनमें अदिति से देवता, दिति से दैत्य, दानु से दानव, विनता से गरुड़ और अरुण, खसा से यक्ष और राक्षस, कद्र से नाग, मुनि से गन्धर्व, क्रोधा से कुल्योप, अरिष्टा से अप्सराये, इरा से ऐरावत श्रादि हाथी, ताम्रा से श्येन, भास, शुक श्रादि पक्षियों को जन्म देनेवाली श्येनी आदि कन्यायें, इला से वृक्ष तथा प्रधा से जलजन्तु उत्पन्न हुये। ब्रह्माजी ने ज्येष्ठता के कारण देवताओं को यज्ञभाग का भोक्ता और त्रिभुवन का स्वामी बनाया / इस बात से अप्रसन्न हो दैत्य और दानवों ने देवताओं से लड़ाई छेड़ दी। सहस्र वर्ष तक उनका परस्पर युद्ध चलता रहा अन्त में देवताओं को पराजित कर दैत्य और दानवों ने विजय प्राप्त की। देवताओं को पराजित और अधिकारच्युत देखकर उनकी माता अदिति को बड़ा शोक हुआ और उन्होंने अपने पुत्रों को विजयी बनाने की कामना से सूर्यदेव की आराधना श्रारम्भ की। बहुत दिन बीत जाने पर सूर्य देव ने अाकाश में अपने तेजोमय रूप को प्रकट किया / पर अदिति की आँखें उन्हें यथावत् देखसकने में समर्थ न हुई तब फिर उन्होंने ऐसे सौम्यरूप में प्रकट होने की प्रार्थना की जिससे वे उनका दर्शन कर सकें। एक सौ पाँचवाँ अध्याय इस अध्याय में बताया गया है कि अदिति की प्रार्थना पर सूर्यदेव ने अपना परमकान्तिमय, सौम्यरूप प्रकट किया जिसे देखकर वे प्रसन्न हो सूर्यदेव के चरणों पर गिर पड़ीं / सूर्यदेव ने वर माँगने का आदेश दिया। अदिति ने प्रार्थना की-- "श्राप दैत्यों से पराजित मेरे पुत्रों को विजयी बनाने के लिये मेरे पुत्र के रूप में प्रादूर्भत हों"। सूर्यदेव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर सुषुम्ना नामक अपनी सहस्र किरणों की समष्टि से उनके गर्भ में प्रवेश किया। कुछ दिन बाद सूर्यदेव अदिति के गर्भ से प्रकट होकर मार्तण्ड नाम से ख्यात हुये / तत्पश्चात् देवताओं
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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