________________ ( 123 ) ने दैत्यों और दानवों पर अाक्रमण किया और उनमें तुमुल युद्ध ठन गया। इस युद्ध में मार्तण्ड ने अपनी दाहक किरणों का प्रयोग किया जिससे समस्त दैत्य तथा दानव जल गये और देवताओं को उनके खोये हुए सम्पूर्ण अधिकार प्राप्त हुये। एक सौ छावाँ अध्याय इस अध्याय में बताया गया है कि मार्तण्ड ने इस देवदानव-संग्राम में जो अलौकिक सामर्थ्य प्रदर्शित किया उससे प्रसन्न हो प्रजापति विश्वकर्मा ने अपनी पुत्री संज्ञा का उनसे विवाह कर दिया। उससे मार्तण्ड ने दो पुत्र और एक कन्या उत्पन्न की जिनका क्रम से वैवस्वत, यम और यमुना नाम पड़ा / संज्ञा सूर्यदेव का तेज सहन करने में असमर्थ होकर अपने स्थान में अपनी छाया को रख कर पिता के घर चली गयी। पिता के घर कुछ दिन बिताकर वह कुरुदेश गयी और वहां अश्वा के रूप में अपने को छिपा कर तपस्या करने लगी। इधर छायासंज्ञा ने सूर्यदेव के सम्पर्क से सावर्णि और शनैश्चर नाम के दो पुत्र तथा तपती नाम की एक कन्या उत्पन्न की। कुछ दिन बाद छाया के पुत्र यम और उसकी विमाता छायासंज्ञा के बीच वैमनस्य होने पर जब सूर्यदेव को यह सब रहस्य ज्ञात हुआ तब वे संज्ञा की खोज में निकले / उनके श्वशुर विश्वकर्मा से उन्हें ज्ञात हुअा कि उनकी पत्नी छाया उनके तेज को सहने में असमर्थ होने के कारण उनके शरीर में सौम्य, सहनीय एवं कमनीय रूप प्रकट करने के उद्देश्य से कुरुदेश में तपस्या कर रही है। यह सुन सूर्यदेव ने उनसे कहा-'यदि ऐसी बात है तो श्राप कृपा कर मेरे तेज की उग्रता निकाल देने का कोई यत्न कीजिये / विश्वकर्मा ने उनकी बात मानकर उन्हें यन्त्र पर चढ़ा दिया और उनके तेज की छटनी कर उनके शरीर को सौम्य, सह्य और सुन्दर बना दिया / एक सौ सातवाँ अध्याय इस अध्याय में सूर्य के तेजःशातन के समय विश्वकर्मा ने उनकी जो स्तुति की थी उसका उल्लेख है / स्तुति बड़ी गम्भीर तथा सुन्दर है / एक सौ आठवाँ अध्याय इस अध्याय में बताया गया है कि जब विश्वकर्मा ने सूर्यदेव के तेज की छटनी कर उन्हें सौम्य बना दिया तब कुरुदेश में जाकर अश्व के रूप में हो उन्होंने अश्वा रूप में स्थित अपनी पत्नी से मिलने की चेष्टा की। इस चेष्टा के फलस्वरूप अश्वा की नासिका में सूर्यदेव के तेज