________________ ( 120 ) निकली / उसने अपनी मालिनी नामक रूपवती कन्या के पाणिग्रहण का प्रस्ताव किया / रुचि ने पितरों के वचन का स्मरण कर प्रस्ताव को कार्यान्वित किया / फिर उसी स्त्री से एक पुत्र पैदा हुआ जो रोच्य नामक मनु हुा / अध्यायान्त में कहा गया है कि इस मन्वन्तर का श्रवण करने पर धर्म, आरोग्य, धन, धान्य और पुत्र की वृद्धि होती है। निबानबेवाँ अध्याय इस अध्याय में चौदहवें मनु भौत्य के जन्म तथा उस मन्वन्तर के देवता, इन्द्र, सप्तर्षि, और राजवंशों का वर्णन किया गया है जिसका उल्लेख इस निबन्ध में पहले किया जा चुका है। इस अध्याय में ऋषिवर भूति के शिष्य शान्ति के द्वारा की गई अग्नि की स्तुति द्रष्टव्य है / इस स्तुति से अग्नि के सम्बन्ध में अच्छी जानकारी प्राप्त होती है। इस स्तुति के अनुसार अग्नि ही सब प्राणियों का साधक, देवतावों का जीविकाप्रद तथा समस्त जगत् का उत्पादक, पालक और संहारक है। अग्नि ही मेघ का निर्माण कर वर्षा का सम्पादन करता है। वही समस्त खाद्य-पेय पदार्थों तथा सम्पूर्ण औषधि और वनस्पतियों का परिपाक कर उनमें पोषक तत्त्वों का संचय करता है। वही जीवों के जठर में रहकर सब प्रकार के आहारों को पका उन्हें पोषक रस के रूप में परिणत करता है। वही समस्त वैदिक, लौकिक, कर्मों का प्रमुख साधन है / जगत् के पदार्थों में प्राप्त होनेवाला उष्म उसी का रूप है। सूर्य आदि की तेजस्विता और जड़ चेतन वस्तुओं की कान्तिमत्ता उसी का अनुभाव है / समय का सारा विभाग भी उसी पर आश्रित है। काली, कराली, मनोजवा, सुलोहिता, सुधूम्रपर्णा, स्फुलिङ्गिनी और विश्वा ये उसकी सात जिह्वायें-ज्वालायें हैं / जिनमें पहली से काल के स्वरूप की निष्पत्ति, दूसरी से महाप्रलय की प्रवृत्ति, तीसरी से लघुता की उपपत्ति, चौथी से कामना की पूर्ति, पाँचवी से रोगों की निवृत्ति, छठी से विविध शस्त्रों की उत्पत्ति, और सातवीं से सुख, सुविधा की सृष्टि होती है / वही समुद्र के भीतर रहकर उसे असमय में अतिवेल होने से बचाता है। उसका पराक्रम और महत्त्व असीम है। वह किसी न किसी रूप में सारे संसार में अभिव्याप्त है / उसी से जगत् के समस्त विकारों का दाह होकर कण कण का शोधन होता है। वही सम्पूर्ण विश्व का धारक तत्त्व और समस्त भूतों का जीवन तत्त्व है। ऋषिगण उसे वह्नि, सतार्चि, कृशानु, हव्यवाहन, अग्नि, पावक, शुक्र और हुताशन नामों से व्यवहृत करते हैं /