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________________ ( 116 ) भी सत्य है कि कर्म ही विद्या की प्राप्ति का उपाय है, क्योंकि वेद-विहित कर्म का परित्याग करदेने से मनुष्य का मन मलिन हो जाता है और मलिन मन में विद्या का प्रकाश नहीं फैल सकता। अतः वेदोक्त नित्य-नैमित्तिक कर्मों के अनुष्ठान से मन का परिष्कार कर के ही मोक्षप्रदा विद्या की प्राप्ति की जा सकती है, अन्यथा नहीं। इस लिये कर्मानुष्ठान का अधिकार प्राप्त करने के निमित्त तुम दारसंग्रह अवश्य करो। रुचि ने कहा-"मैं वृद्ध और दरिद्र हूँ, मुझे कौन कन्या देगा, अतः मेरे लिये दारसंग्रह सम्भव नहीं है / पितरों ने कहा-“यदि तुम हमारी बात नहीं मानोगे तो हमारा पतन और तुम्हारी अधोगति निश्चित है " छानबेवाँ अध्याय पितरों के उपदेश से रुचि का मन विवाह करने को उत्सुक हुश्रा, अब उनके सामने यह समस्या खड़ी हुई कि उन्हें कन्या की प्राप्ति कैसे हो / अपनी वृद्धावस्था और दरिद्रता का विचार कर जब उन्होंने कन्या पाने की सम्भावना न देखी तव तदर्थं ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिये सौ बर्ष तक कठोर तपस्या की / ब्रह्मा ने प्रसन्न होकर उनके प्रयोजन की सिद्धि के लिये उनको पितरों की स्तुति करने की सम्मति दी। फिर रुचि ने भक्तिपूर्वक पितरों की बड़ी उत्तम स्तुति की। इस स्तुति से पितरों के सम्बन्ध में अच्छी जानकारी प्रात होती है, स्तुति कण्ठ रखने योग्य है / / सत्तानबेवाँ अध्याय पितरों की स्तुति करते समय रुचि के सामने एक महान् तेजोराशि प्रकट हुई / उसमें से निकल कर पितरों ने कहा-"तुम्हें अभी यहीं पर एक परम सुन्दरी स्त्री प्राप्त होगी, उससे तुम जिस पुत्र को पैदा करोगे वह मनु होकर अपने वंश का विस्तार करेगा। अध्यायान्त में बताया गया है कि रुचि ने पितरों की जो स्तुति की है, भिन्न-भिन्न अवसरों पर उसका पाठ करने से भिन्नभिन्न फलों की प्राप्ति होगी। अहानबेवाँ अध्याय इस अध्याय की कथा यह है कि जिस नदी के किनारे रुचि तपस्या कर रहे थे, पितरों के कथनानुसार उसी नदी से प्रम्लोचा नाम की एक अप्सरा
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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