________________ ( 108 ) उसको चुरा कर ले जाने वाले राक्षस से मिला / राक्षस ने राजा का सत्कार किया और कहा कि किसी "दुर्भाव से मैंने ब्राह्मण की स्त्री को नहीं चुराया है किन्तु ब्राह्मण रक्षोध्न मन्त्रों का प्रयोग कर यज्ञों से मेरा उच्चाटन करता था, अतः उसे भार्या से वियुक्त कर उसकी शक्ति को शिथिल करने के हेतु मैंने उसका अपहरण किया है / मैं श्राप की प्रजा हूँ, आप जो अाज्ञा दें उसका पालन करूँ।" यह सुन राजा ने सन्तुष्ट हो उससे कहा कि तुम इस स्त्री के दुष्ट शील का भक्षण कर इसे विनीत बना इसके घर पहुँचा दो। राक्षस ने राजा की आज्ञा शिरोधार्य की और राजा के स्मरण करने पर किसी भी समय उसकी सेवा में उपस्थित होने की प्रतिज्ञा की / . एकहत्तरवाँ अध्याय इस अध्याय में बताया गया है कि राजा ब्राह्मण की पत्नी को उसके घर भेज कर ऋषि के पास जब गया तब ऋषि ने उससे कहा पत्नी धर्मार्थकामानां कारणं प्रबलं नृणाम् / विशेषतश्च धर्मश्च सन्त्यक्तस्त्यजता हि ताम् / / 6 / / अपत्नीको नरो भूप! न योग्यो निजकर्मणाम् / / ब्राह्मणः क्षत्रियो वापि वैश्यः शुद्रोऽपि वा नृप ! // 10 // त्यजता भवता पत्नी न शोभनमनुष्ठितम् / अत्याज्यो हि यथा भत्तो स्त्रीणां भायो तथा नृणाम् / / 11 // राजन् ! पत्नी मनुष्यों के धर्म, अर्थ. और काम का मुख्य साधन है, उसका त्याग करने से धर्म का विशेषरूप से त्याग हो जाता है। मनुष्य ब्राह्मण हो चाहे क्षत्रिय हो, चाहे वैश्य हो, चाहे शूद्र हो, पत्नी के अभाव में अपने कर्मों के योग्य नहीं रह जाता / तुमने अपनी पत्नी का परित्याग कर अच्छा नहीं किया / क्योंकि जैसे स्त्री को अपने पति का त्याग करना अनुचित है वैसे ही पुरुष को भी अपनी पत्नी का त्याग करना अनुचित है। यह सुन राजा अपनी करनी पर तथा अपनी पत्नी को पुनः प्राप्त करने की असमर्थत्ता पर पश्चाताप और चिन्ता करने लगा / तब ऋषि ने कहा "चिन्ता मत करो / तम्हारी पत्नी पाताल में नागराज कपोतक की पुत्री नन्दा के साथ विद्यमान है और उसके चरित्र में किसी प्रकार का कल्मष नहीं है। शुभ मुहूर्त में पाणिग्रहण न होने से ही तुम्हें उसका पूर्णानुराग नहीं प्राप्त हुआ। अब तुम वहां से उसे लाकर अपने साथ रखो, और उसके साथ सानन्द रहते हुये धर्मपूर्वक प्रजा का पालन करो"|